Saturday, July 29, 2017

गोपनीयता और क्रांति (बस्तर: अनकही-अनजानी कहानियाँ, भाग – 42)


योजना और अनुशासन का ऐसा उदाहरण विश्व में घटित सफलतम क्रांतियों में भी कम देखा गया है जहाँ एक विशाल भूभाग आंदोलित हो लेकिन उसकी तैयारियों की भनक  व्यवस्था को न लग सके। वर्ष 1910 के भूमकाल की अनेक विवेचनायें हैं किंतु सबसे सराहनीय इसकी असाधारण गोपनीयता थी। छुटपुट खबरें थीं कि गाँव-गाँवों में आम की डाल और मिर्च भेजी जा रही है, यह ग्रामीणों के संगठित होने और विप्लव के लिये स्वीकारोक्ति प्रदान करने का संकेतचिन्ह था। ब्रिटिश पॉलिटिकल एजेंट दिब्रेट ने वर्ष 1910 के जनवरी माह में बस्तर का दौरा किया। वे केशकाल, कोण्डागाँव, केशलूर आदि के माझियों से मिले तथा प्रशासन से सम्बंधित चर्चायें की। सभी ने उन्हें आश्वस्त किया कि बस्तर में हालात ठीक हैं, किसी गडबडी की कोई संभावना नहीं है। दौरे पर दि ब्रेट के साथ दीवान पंडा बैजनाथ, राजगुरु मित्रनाथ ठाकुर तथा पुलिस इंसपेक्टर थे, सभी ने बताया कि अंग्रेज बहादुर का प्रशासन शांति और खुशहाली लाने वाला है। तुमनार गाँव के पास शिविर लगाया गया जिसमे बडी संख्या में आदिवासी एकत्रित हुए तथा बहुत ही सामान्य रूप से उन्होंने अपनी समस्यायें सामने रखीं। जनजातीय नृत्यों को देख कर तो ब्रिटिश पॉलिटिकल एजेंट अभिभूत हो गया था। पूरी विवेचना में और विस्तृत दौरे में उसे बस्तर में किसी तरह की अराजकता अथवा अशांति के पनपने की भनक नहीं लगी। अपनी टूर रिपोर्ट में दि ब्रेट ने लिखा - “बस्तर शांत राज्य है तथा दीवान रायबहादुर पण्डा बैजनाथ का कार्य प्रसंशनीय है। मैं लोगों से मिला और उनकी शिकायतें सुनीं। राज्य में कोई गंभीर समस्या प्रतीत नहीं होती। बीजापुर में मुझे जानकारी मिली कि कुछ लोग एक स्थान से दूसरे स्थान पर मिर्च भेज रहे हैं। दीवान ने तात्कालिक जांच के बाद इसे स्वाभाविक घटना बताया है।” रिपोर्ट पर दि ब्रेट के हस्ताक्षर के नीचे 31/जनवरी/1910 तारीख डली हुई थी।  यह पूर्वनियोजित था कि जब तक पॉलिटिकल एजेंट –‘दि ब्रेट’ रियासत के दौरे पर हैं, कोई हलचल न की जाये। उसके जाते ही प्रशासन को समझने या संभलने का मौका दिये बिना एकाएक चौतरफा हमला हो। 31 जनवरी को दि ब्रेट बस्तर से लौट जाते हैं और उसके ठीक अगले ही दिन 1 फरवरी, 1910 को सम्पूर्ण बस्तर रियासत में एक साथ महान क्रांति भूमकाल की आग सुलग उठी थी।

- राजीव रंजन प्रसाद 
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