Wednesday, January 20, 2010

मैं गा लूँ जग की पीड़ा माँ [वसंत पंचमी पर - वंदना]


वीणा के तार से गीत बजें
मैं गा लूँ जग की पीड़ा माँ


मेरे आँसू, मेरी आहें,
मेरे अपने हैं रहने दो
पलकों के गुल पर ठहर
कभी बहते हैं, बहने दो

सुख की थाती का क्या करना
करने दो दुख को क्रीड़ा माँ
वीणा के तार से गीत बजे
मैं गा लूं जग की पीडा माँ

देखो बिखरी है भूख वहाँ,
परती हैं खेत बारूद भरे
हर लाश है मेरी, कत्ल हुई
मेरे ही नयना झरे झरे

पीड़ा पीड़ा की क्रीड़ा है
हर लूँ, मुझको दो बीड़ा माँ
वीणा के तार से गीत बजे
मैं गा लूं जग की पीड़ा माँ

(विद्यालय काल के एक मित्र के अनुरोध पर यह रचना पाठको के सम्मुख रख रहा हूँ। रचना लगभग 18 वर्ष पुरानी है, तथापि अपेक्षा है पाठक निराश नहीं होंगे)