Monday, April 30, 2007

वही रास्ता..


मुझे मौत ही की सजा मिले।
मुझे गम के फंदे में झोल कर,
तुझे मुस्कुराने की बात हो
मुझको कबूल फिर रात है।
मुझे उफ न करने का दम्भ है
मुझे नश्तरों से गिला नहीं
मुझे रात भर तेरी कैद थी
तू जो खिल गया
मुझे मिल गया
वही रास्ता जहाँ जन्नतें
वही ठौर जिसको कि मन्नतें
कभी सजदा करके न पा सकी.

*** राजीव रंजन प्रसाद

16.04.2007

Friday, April 20, 2007

रिक्त...



गुजरा हुआ जमाना
जिस पेड पर टंगा था
बंदर वहाँ बहुत थे
कुछ पोटली से उलझे
मिल गाँठ खोल डाली
पर हिल गयी जो डाली
पल झर गये नदी में
घुट मर गये नदी में
अब जल रही नदी है
मैं रिक्त हो गया हूँ..

*** राजीव रंजन प्रसाद
20.04.2007

Sunday, April 15, 2007

शक

तुम याद आये और हम खामोश हो गये
पलकों पे रात उतरी, शबनम से रो गये

सौ बार कत्ल हो कर जीना था फिर भी मुमकिन
अश्कों के सौ समंदर पीना था फिर भी मुमकिन
फटते ज़िगर में अंबर आ कर ठहर गया है
टुकडे बटोर कर दिल सीना था फिर भी मुमकिन

नफरत नें तेरे दिल को पत्थर बना दिया है
सपनों नें तेरी आँखें देखीं की सो गये
पलकों पे रात उतरी, शबनम से रो गये

मेरी नींद में तुम्हारा आना भी अब सज़ा है
करवट बदलना नींद न आना भी अब सज़ा है
जीना ये कैसा जीना, मुर्दा ये जिस्म ये मन
सांसों का आना, थमना, जाना भी अब सज़ा है

तेरा ही शक, तेरा ही हर ज़ख्म तेरे दिल पर
तुम अपने ही सीनें में खुद खार बो गये
पलकों पे रात उतरी, शबनम से रो गये

तुम चैन न पाओगे, मुझको यकीं है ए दिल
तेरे आँसुओं की कश्ती, ढूंढा करेगी साहिल
मुझे जीते जी जला कर तुमनें ये क्या किया है
मेरी राख तेरे माथे का सच है मेरी मंज़िल

खुद को न यूं बिखेरो, मेरी जान, मेरी धडकन
सच दिल से पूछ लो दिल, तुम तुम से खो गये
पलकों पे रात उतरी, शबनम से रो गये

***राजीव रंजन प्रसाद
७.०१.१९९५

Saturday, April 14, 2007

तुम और क्षणिकायें..

तुम -१

मेरे बगीचे के गुलाब
मुस्कुराते नहीं थे
हवा मुझे छू कर गुनगुनाती नहीं थी
परिंदों नें मुझको चिढाया नहीं था
मेरे साथ मेरा ही साया नहीं था
तुम्हे पा लिया, ज़िन्दगी मिल गयी है
चरागों को भी रोशनी मिल गयी है
नदी मुझसे मिलती है इठला के एसे
कि जैसे शरारत का उसको पता हो
कि कैसे मेरे पल महकने लगे हैं
कि कैसे मेरा दिल धडकने लगा है..

तुम -२

ग़मों ने दामन छोडा तो..
उलझा मैं एसा था
कि खरोंचों नें
दिल का कोना कोना लहू कर दिया था
मैनें भी जीना छोड दिया था
ये क्या हुआ जानम
ये कैसी हलचल है
तुम्हे छू कर दिल बे-लगाम हो गया है
और खुशी नें मुझे चिमट कर कहा
क्या सोचते हो?..
यकीन नहीं आता कि ज़िन्दा हूं मैं

तुम -३

मैं जिस राह चला था
अंधेरा था
मैं जिस मोड मुडा था,
एक भुलभुलैया थी
मेरे कदम उस मंज़िल की ओर थे,
जो थी ही नहीं
और जो तुम मिले
राहों में चाँदनी हो गयी
और जब मैंनें महसूस किया
कि मंज़िल बस कदम भर के फासले पर है
बढ कर तुम्हे बाहों में भर लिया मैनें

तुम -४

तुमसे ज़न्नत हो गयी
और तब उन पुरानी किताबों पर
यकीन गहरा हो गया
जिन्होनें खुदा का यकीन दिलाया था..
और जानम तुम मिल भी गये

तुम -५

तुम गहरे हो
मन गहरा है
और प्यार कितना गहरा है
अब जो डूबा, डूब गया हूं
मुझे कभी साहिल पर ला कर
रेत रेत कर लौ लहर सी
तुम जाना मत जानम मेरे
मैं फिर मरुथल हो जाऊंगा..

तुम -६

मुझमें डूब गया है चाँद
और सुबह हो गयी
रात कितनी काली थी
अब सोचता हूं मैं..

*** राजीव रंजन प्रसाद
१.११.२०००

Friday, April 13, 2007

ए मेरे दोस्त

ज़िन्दगी अब तेरे नाम पे हँस के देखा
और छल छल के भरी आँख का पानी मुझको
चुपचाप कान ही में कह गया देखो
होठ इतने भी न फैलाओ मेरे यार सुनो
ग़म को सहने के लिये दम न निकालो अपना
चीख कर रो भी लो
बहुत देर तक ए मेरे दोस्त..

राजीव रंजन प्रसाद
८.१२.१९९५

Wednesday, April 11, 2007

प्यासा और पानी...

प्यासा समंदर के किनारे मर गया
पानी के नमक हैं, युवक मेरे देश के
प्यासे की चिता पर फट पडे बादल
तेजस्वी घनघोर हैं, युवक मेरे देश के
प्यासे की राख तैरती रही, बहती रही..
पानी पानी भी नहीं हैं
रवानी की बात करते हैं
किसी बोतल में बंद
शाम सुहानी की बात करते हैं
प्यासा अब है ही नहीं..

दुनिया में कितनी है चमक
जो लडखडा के गिर पडा
वो सलीम है इस युग का
तकदीर मुल्क की
पानी के छींटे मुख पर
छिडक भी दो अनारकली
खोल देगा पलक
मरा नहीं है युवक..

*** राजीव रंजन प्रसाद
10.04.2007

Saturday, April 07, 2007

तुम कहाँ थे?

जब नेता बिक रहे थे
विधान सभा में फेकी जा रही थी माईकें
टीवी पर बिना पतलून के दिखाई जा रही थी खादीगिरि
”उनके” इशारों पर हो रहे थे एनकाउंटर्स
जलाये जा रहे थे मुहल्ले
तुम कहाँ थे?

मैं कोई सिपहिया तो हूँ नहीं
कि लोकतंत्र के कत्ल की वजह तुमसे पूछूं
मुझे कोई हक नहीं कि सवाल उठाऊं तुम्हारी नपुंसकता पर
लेकिन आज बोरियत बहुत है यार मेरे
मिर्च-मसाले सा कुछ सुन लूं तुम ही से
टाकीज में आज कौन सी पिक्चर नयी है?
तुम्हारी पुरानी गर्लफ्रेंड के नये ब्वायफ्रेंड की
दिलचस्पी लडको में है?
कौन से क्रीकेटर नें फरारी खरीदी?
कौन सा बिजनेसमेन देश से फरार है?
बातें ये एसी हैं, इनमें ही रस है
देश का सिसटम तो जैसे सर्कस है
अब कोई नहीं देखता....

मेरे दोस्त,
किसी बम धमाके में
अपने माँ, बाप, भाई, बहन को खो कर
अगर चैन की नींद सोनें का कलेजा है भीतर
तो मत सोचो, सिगरेट से सुलगते इस देश की
कोई तो आखिरी कश होगी?

उस रोज संसद में फिर हंगामा हुआ था
उस रोज फिर बहस न हुई बजट पर
मैं यूं ही भटकता हुआ सडक पर
जाता था कि फेरीवाले नें कहा ठहरो “युवक”
यह भेंट है रखो, बाँट लो आपस में
कहता वह ओझल था, आँखों से पल भर में
खोला जब डब्बे को, हाँथों से छूट गया
बिखर गयी सडको पर चूडियाँ चूडियाँ...


*** राजीव रंजन प्रसाद
7.04.2007