Saturday, April 14, 2007

तुम और क्षणिकायें..

तुम -१

मेरे बगीचे के गुलाब
मुस्कुराते नहीं थे
हवा मुझे छू कर गुनगुनाती नहीं थी
परिंदों नें मुझको चिढाया नहीं था
मेरे साथ मेरा ही साया नहीं था
तुम्हे पा लिया, ज़िन्दगी मिल गयी है
चरागों को भी रोशनी मिल गयी है
नदी मुझसे मिलती है इठला के एसे
कि जैसे शरारत का उसको पता हो
कि कैसे मेरे पल महकने लगे हैं
कि कैसे मेरा दिल धडकने लगा है..

तुम -२

ग़मों ने दामन छोडा तो..
उलझा मैं एसा था
कि खरोंचों नें
दिल का कोना कोना लहू कर दिया था
मैनें भी जीना छोड दिया था
ये क्या हुआ जानम
ये कैसी हलचल है
तुम्हे छू कर दिल बे-लगाम हो गया है
और खुशी नें मुझे चिमट कर कहा
क्या सोचते हो?..
यकीन नहीं आता कि ज़िन्दा हूं मैं

तुम -३

मैं जिस राह चला था
अंधेरा था
मैं जिस मोड मुडा था,
एक भुलभुलैया थी
मेरे कदम उस मंज़िल की ओर थे,
जो थी ही नहीं
और जो तुम मिले
राहों में चाँदनी हो गयी
और जब मैंनें महसूस किया
कि मंज़िल बस कदम भर के फासले पर है
बढ कर तुम्हे बाहों में भर लिया मैनें

तुम -४

तुमसे ज़न्नत हो गयी
और तब उन पुरानी किताबों पर
यकीन गहरा हो गया
जिन्होनें खुदा का यकीन दिलाया था..
और जानम तुम मिल भी गये

तुम -५

तुम गहरे हो
मन गहरा है
और प्यार कितना गहरा है
अब जो डूबा, डूब गया हूं
मुझे कभी साहिल पर ला कर
रेत रेत कर लौ लहर सी
तुम जाना मत जानम मेरे
मैं फिर मरुथल हो जाऊंगा..

तुम -६

मुझमें डूब गया है चाँद
और सुबह हो गयी
रात कितनी काली थी
अब सोचता हूं मैं..

*** राजीव रंजन प्रसाद
१.११.२०००

6 comments:

देवेश वशिष्ठ ' खबरी ' said...

तुम्हे छू कर दिल बे-लगाम हो गया है
और खुशी नें मुझे चिमट कर कहा
क्या सोचते हो?..
यकीन नहीं आता कि ज़िन्दा हूं मैं

बेहतरीन रंजन जी। सच मेंजब दिल बेलगाम हो जाता है तो शिशुवत हरकतें होती हैं, तब कहाँ पता चलता है कि जिंदा हैं या नहीं। बस दिल की मौज है सब।

मेरे कदम उस मंज़िल की ओर थे,
जो थी ही नहीं
और जो तुम मिले
राहों में चाँदनी हो गयी

यकीनन अगर यकीन गहरा हो तो रास्ता दिखाने को किसी बडे गुरू की जरूरत कहाँ होती है।

तुमसे ज़न्नत हो गयी
और तब उन पुरानी किताबों पर
यकीन गहरा हो गया
जिन्होनें खुदा का यकीन दिलाया

और

तुम जाना मत जानम मेरे
मैं फिर मरुथल हो जाऊंगा..

रात कितनी काली थी
अब सोचता हूं मैं..
बहुत बढिया छुआ है जीवन को ।
http://deveshkhabri.blogspot.com/

Anonymous said...

अच्छा लगा इन कविताओं को पढ़कर!

Mohinder56 said...

सुन्दर अभिव्यक्ति...

तुम्ही से शुरु तुम्ही पर कहानी खत्म करें... और क्या रखा है इस जीवन मेँ

राकेश खंडेलवाल said...

राजीवजी

अच्छी लगी आपकी नज़्में. विशेष्त: पहली

रंजू भाटिया said...

तुम्हे पा लिया, ज़िन्दगी मिल गयी है
चरागों को भी रोशनी मिल गयी है
नदी मुझसे मिलती है इठला के एसे
कि जैसे शरारत का उसको पता हो
कि कैसे मेरे पल महकने लगे हैं
कि कैसे मेरा दिल धडकने लगा है..

sab hi bahut sundar likhi hai ..yah lines bahut apne kareeb lagi...aapka likha padhana ..kuch naye vichaaro ko janam de jaata hai ..shukriya

Anonymous said...

सभी क्षणिकायें सुन्दर है।

तुम्हे छू कर दिल बे-लगाम हो गया है
और खुशी नें मुझे चिमट कर कहा
क्या सोचते हो?..
यकीन नहीं आता कि ज़िन्दा हूं मैं

लेख़न की यह अदा मजेदार है, "खुशी का चिमटना"... शानदार अनुभूति है।