Friday, April 13, 2007

ए मेरे दोस्त

ज़िन्दगी अब तेरे नाम पे हँस के देखा
और छल छल के भरी आँख का पानी मुझको
चुपचाप कान ही में कह गया देखो
होठ इतने भी न फैलाओ मेरे यार सुनो
ग़म को सहने के लिये दम न निकालो अपना
चीख कर रो भी लो
बहुत देर तक ए मेरे दोस्त..

राजीव रंजन प्रसाद
८.१२.१९९५

4 comments:

Gaurav Shukla said...

बहुत सुन्दर कविता है राजीव जी
गम्भीर भाव
बहुत अच्छा

गौरव

Gaurav Shukla said...
This comment has been removed by the author.
योगेश समदर्शी said...

वाह!
बहुत खूब
कम पंक्तियों मे बहुत दमदार बात कह गये आप

चीख कर रो भी लो
बहुत देर तक ए मेरे दोस्त..

Mohinder56 said...

Jindgi Kum hai, Isae Huns ke Sambhalo Yaro,
Gum Koyee Dil mein na Rahe, Isae kisi tarah bhi nikalo Yaro.