Wednesday, July 25, 2007

मछली की आँखें




मेरी अमावस्या इस लिये है
कि मेरा चाँद
मेरी आँखों की बाहों में लिपट गया है
और कुछ दीख नहीं पडता
सिर्फ मछली की आँखें..

*** राजीव रंजन प्रसाद
२१.०२.१९९७

Wednesday, July 11, 2007

हर बार

चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

एकांत
ध्यानमग्न बगुला
एकदम से ताल के ठहरे पानी पर झपटा
पानी भवरें बनानें लगा
उसकी परछाई लहरानें लगी
वह शांत हुआ
पंजे में कुछ न था
मछली या कि अपनी ही परछाई

फिर वही एकांत
वही ध्यानमग्न बगुला
वही ठहरा हुआ पानी
वही परछाई..

मछली तो फसेगी आखिरकार
क्योंकि उसे नहीं पता
चरित्र और चेहरे एक नहीं होते
और मैं हर बार देखता हूं
झपटते हुए बगुले को
अपनी ही परछाई पर..

*** राजीव रंजन प्रसाद
७.०१.१९९५

Monday, July 09, 2007

तस्वीरों को..


सिर्फ तुम्हारी चंद तस्वीरें मेरे पास हैं
और तुम कहीं भी नहीं

तुम्हें भूल जाने की कोशिशें तो की हैं
लेकिन जला नहीं पाता उन तस्वीरों को
एक सोच सुलग जाती है हर बार
तुम्हारी तस्वीर मेरी आँखें झुलसा देती है
और अपनें अंतिम-संस्कार पर
तुम्हारी उन्ही उदास तस्वीरों को
फिर रोता पाता हूँ..

*** राजीव रंजन प्रसाद
९.०३.१९९८

Friday, July 06, 2007

अपना ही कलेजा बुझा लिया..


मनाओ कि दिवाली है तुम्हारी
कि दिल जले..

इस दिलजले के दिल को जला कर की रोशनी
आँखों में कुछ धुवां सा गया
आँख नम हुई
मैनें जो कहा था तो बताओ ये सच है न
तुम मतलबी हो यार, बहुत मतलबी हो यार
मुझे फिर जला गये समूचा जो रो दिये
फिर रो के भी अपना ही कलेजा बुझा लिया..

*** राजीव रंजन प्रसाद
५.१०.१९९८

Tuesday, July 03, 2007

चाँद पूनम का और क्षणिकायें


चाँद पूनम -१

वस्ल की रात
पलक मूंद कर पाया मैनें
हर तरफ चाँदनी की खुशबू थी
आँख जो मेरी खुली, तुमने बन्द की आखें
आज पूनम का चांद निकला है
मैंनें चंदा रखा हथेली पर
झील हैं जान आपकी आँखें
चाँद इस तरह सहम कर बोला
जैसे डूबेगा तो खो जायेगा...

चाँद पूनम -२

चाँद पूनम सा तुम्हारा चेहरा
और घनघोर अमावस गहरा
चाँदनी आग लगाती है
और कतरा कतरा शबनम
पलक पंखुडी पर पडी है
आज फिर रात बहुत काली है
इस मुलाकात फिर वही बातें
वस्ल में हिज़्र की तडप फिर फिर..

चाँद पूनम -३

चाँदनी रात जलाती क्यों है
याद इस तरह से आती क्यों है
चाँद पूनम का आज निकला है
और मेरी निगाह में डूबा
जिस तरह मैं तुम्हारी आखों में
डूब जाता था
मेरा तुम्हारा और चाँद का
जो वस्ल में नाता था
वो हिज़्र मे मेरा, चाँद का और यादों का रह गया है..

चाँद पूनम -४

वस्ल का चाँद मुस्कुराता है
हिज़्र का अश्क बहाता है
रात कल किस तरह उदास रही
आँख को यार की तलाश रही
आज पूनम का चाँद सीनें पर
सिर रखे चुप का इशारा मुझको
कर के सुनता है कहकहे तम के..

चाँद पूनम -५

चाँद पूनम के मेरे
ज़ुल्फ न बिखरा के रखो
बादलों से न ढको आज ये अपना चेहरा
एक बिन्दी कि नज़र न लगे...
नज़ारों को भी खबर हो
चाँदनी के जलाने का राज़ गहरा
शर्म से पिघल जाता है मेरा चाँद
पा कर मेरी निगाह का पहरा..

***राजीव रंजन प्रसाद
११.११.२०००