Tuesday, July 03, 2007
चाँद पूनम का और क्षणिकायें
चाँद पूनम -१
वस्ल की रात
पलक मूंद कर पाया मैनें
हर तरफ चाँदनी की खुशबू थी
आँख जो मेरी खुली, तुमने बन्द की आखें
आज पूनम का चांद निकला है
मैंनें चंदा रखा हथेली पर
झील हैं जान आपकी आँखें
चाँद इस तरह सहम कर बोला
जैसे डूबेगा तो खो जायेगा...
चाँद पूनम -२
चाँद पूनम सा तुम्हारा चेहरा
और घनघोर अमावस गहरा
चाँदनी आग लगाती है
और कतरा कतरा शबनम
पलक पंखुडी पर पडी है
आज फिर रात बहुत काली है
इस मुलाकात फिर वही बातें
वस्ल में हिज़्र की तडप फिर फिर..
चाँद पूनम -३
चाँदनी रात जलाती क्यों है
याद इस तरह से आती क्यों है
चाँद पूनम का आज निकला है
और मेरी निगाह में डूबा
जिस तरह मैं तुम्हारी आखों में
डूब जाता था
मेरा तुम्हारा और चाँद का
जो वस्ल में नाता था
वो हिज़्र मे मेरा, चाँद का और यादों का रह गया है..
चाँद पूनम -४
वस्ल का चाँद मुस्कुराता है
हिज़्र का अश्क बहाता है
रात कल किस तरह उदास रही
आँख को यार की तलाश रही
आज पूनम का चाँद सीनें पर
सिर रखे चुप का इशारा मुझको
कर के सुनता है कहकहे तम के..
चाँद पूनम -५
चाँद पूनम के मेरे
ज़ुल्फ न बिखरा के रखो
बादलों से न ढको आज ये अपना चेहरा
एक बिन्दी कि नज़र न लगे...
नज़ारों को भी खबर हो
चाँदनी के जलाने का राज़ गहरा
शर्म से पिघल जाता है मेरा चाँद
पा कर मेरी निगाह का पहरा..
***राजीव रंजन प्रसाद
११.११.२०००
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7 comments:
अच्छी रचना है। ज़डी-बूटियो की खोज मे चाँद को देख्नना कम ही हो पाता है। आज आपके माध्यम से उसे देख भी लिया, उसका अहसास भी कर लिया। बधाई।
राजीव जी
आपकी क्षणिकाओं पर टिप्पणी करना बहुत दुरूह कार्य है मेरे लिये
क्योंकि एक क्षणिका मुझे बहुत देर तक मथती रहती है
"आज फिर रात बहुत काली है
इस मुलाकात फिर वही बातें
वस्ल में हिज़्र की तडप फिर फिर.."
पूनम का चाँद बहुत खूबसूरत है..
आपकी सोच को मेर नमन
गौरव शुक्ल
अगर मैं भी वही पंक्तियाँ quote करूँ जो गौरव जी ने की है, तो please गौरव जी बुरा मत माने क्योंकि ये पंक्तियाँ पढ़ते ही मन के भीतर तक उतरती जाती हैं।
मेरा तुम्हारा और चाँद का
जो वस्ल में नाता था
वो हिज़्र मे मेरा, चाँद का और यादों का रह गया है..
नज़ारों को भी खबर हो
चाँदनी के जलाने का राज़ गहरा
शर्म से पिघल जाता है मेरा चाँद
पा कर मेरी निगाह का पहरा..
पूनम के चाँद के इतने सारे रूप , मैंने तो कभी सोचा भी नहीं था। आज आपमे माध्यम से आज जान गया।
गौरव जी सच हीं कहते हैं कि आपकी क्षणिका पर टिप्पणी करना बड़ा हीं दुरूह कार्य है, क्योंकि हम सामान्य जन से लेखन क्षेत्र में आप बहुत ऊपर जा चुके हैं।
अच्छी रचनाऎँ पढवाने के लिए शुक्रिया।
अच्छी और गहरी कविता लिखी है।
हृदय के उदगारों की सुंदर अभिव्यक्ति!
मेरा तुम्हारा और चाँद का
जो वस्ल में नाता था
वो हिज़्र मे मेरा, चाँद का और यादों का रह गया है..
बहुत सुंदर पंक्तियां लगी।
कंचन जी,
बुरा मानने का प्रश्न कैसे है? :-)
पंक्तियाँ सच में भीतर तक स्पर्श करती हैं, अद्भुत
सस्नेह
गौरव शुक्ल
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