सिर्फ तुम्हारी चंद तस्वीरें मेरे पास हैं
और तुम कहीं भी नहीं
तुम्हें भूल जाने की कोशिशें तो की हैं
लेकिन जला नहीं पाता उन तस्वीरों को
एक सोच सुलग जाती है हर बार
तुम्हारी तस्वीर मेरी आँखें झुलसा देती है
और अपनें अंतिम-संस्कार पर
तुम्हारी उन्ही उदास तस्वीरों को
फिर रोता पाता हूँ..
*** राजीव रंजन प्रसाद
९.०३.१९९८
8 comments:
बड़ी उदासी और घोर हताशा!! क्या बात है, भाई??
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बहुत उदास पर दिल के सच को छुने वाली रचना
"तुम्हारी तस्वीर मेरी आँखें झुलसा देती है"
क्या बात है! निःशब्द
सस्नेह
गौरव शुक्ल
:-( aise kyun likha....again im down .....
राजीव जी
बहुत ही सुन्दर रचना है । जो आपके पास है वही सँभाल कर
रखिए । जीवन में सब कुछ नही मिलता और तसवीर का होना
यही बताता है कि आप बहुत धनवान हैं ।
सस्नेह
आपका कलात्मक सेंस बहुत प्यारा है। रचनओं के साथ आप जिन कविताओं को उपयोग में लाते हैं, वे रचना में चार चाँद लगा देती हैं।
dil ko choo lene wali rachna...jaise sajag ho uthta hai saara drishya aankho ke aage
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