Tuesday, July 11, 2017

महाभारत और बस्तर (बस्तर: अनकही-अनजानी कहानियाँ, भाग – 23)


वर्तमान बस्तर के कई गाँवों के नाम महाभारत में वर्णित पात्रों पर आधारित हैं उदाहरण के लिये गीदम के समीप नकुलनार, नलनार; भोपालपट्टनम के समीप अर्जुन नली, पुजारी; कांकेर के पास धर्मराज गुड़ी; दंतेवाड़ा में पाण्डव गुड़ी नामक स्थलों प्रमुख हैं। बस्तर की परजा (घुरवा) जनजाति अपनी उत्पत्ति का सम्बन्ध पाण्डवों से जोड़ती है। बस्तर भूषण (1908) में पं केदारनाथ ठाकुर ने उसूर के पास किसी पहाड़ का उल्लेख किया है जिसमें एक सुरंग पायी गयी है। माना जाता है कि वनवास काल में पाण्डवों का यहाँ कुछ समय तक निवास रहा है। इस पहाड़ के उपर पाण्डवों के मंदिर हैं तथा धनुष-वाण आदि हथियार रखे हुई हैं जिनका पूजन किया जाता है। महाभारत के आदिपर्व में उल्लेख है कि बकासुर नाम का नरभक्षी राक्षस एकचक्रा नगरी से दो कोस की दूरी पर मंदाकिनी के किनारे वेत्रवन नामक घने जंगल की सँकरी गुफा में रहता था। वेत्रवन अर्थात बकावण्ड नाम बकासुर से साम्यता दर्शाता भी प्रतीत होता है; अत: यही प्राचीन एकचक्रा नगरी अनुमानित की जा सकती है। बकासुर भीम युद्ध की कथा अत्यधिक चर्चित है जिसके अनुसार एकचक्रा नगर के लोगों ने बकासुर के प्रकोप से बचेने के लिये नगर से प्रतिदिन एक व्यक्ति तथा भोजन देना निश्चित किया। जिस दिन उस गृहस्वामी की बारी आई जिनके घर पाण्डव वेश बदल कर माता कुंती के साथ छिपे हुए थे तब भीम ने स्वयं बकासुर का भोजन बनना स्वीकार किया। भीम-बकासुर का संग्राम हुआ अंतत: भीम ने उसे मार डाला। महाभारत में वर्णित सहदेव की दक्षिण यात्रा भी प्राचीन बस्तर से जुड़ती है। विष्णु पुराण में यह उल्लेख मिलता है कि कांतार राज्यों की सेनायें कौरवों की ओर से महाभारत महा-समर में सम्मिलित हुई थी।

- राजीव रंजन प्रसाद

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