Wednesday, July 12, 2017

चालुक्य अथवा काकतीय? (बस्तर: अनकही-अनजानी कहानियाँ, भाग – 25)



बस्तर के मध्यकाल का इतिहास यहाँ नागों को पराजित कर अपनी सत्ता स्थापित करने वाले राजवंश के प्रति काकतीय अथवा चालुक्य की चर्चा में उलझा हुआ प्रतीत होता है। इसे समझने के लिये मध्ययुग के समृद्ध और शक्तिशाली रहे वारंगल राज्य की कहानी जाननी आवश्यक है। वारंगल के काकतीय राजा गणपति (1199-1260 ई.) की दो पुत्रियाँ थीं रुद्राम्बा अथवा रुद्रम देवी तथा गणपाम्बा अथवा गणपम देवी। उनके देहावसान के बाद उनकी बड़ी पुत्री रुद्राम्बा ने सत्ता संभाली। चालुक्य राजा वीरभद्रेश्वर से महारानी रुद्राम्बा का विवाह हुआ था। वर्ष 1260 ई. अथवा इससे कुछ पूर्व राजा गणपति ने अपनी पुत्री रुद्राम्बा को सह-शासिका बनाया तत्पश्चात अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया। चालुक्य राजा वीरभद्र तथा रानी रुद्राम्बा को कोई पुत्र नहीं था। उनकी दो कन्या संततियाँ रुयम्मा एवं मम्मड़म्बा थी। पुत्री मम्मड़म्बा के दो पुत्र हुए प्रतापरुद्र देव एवं अन्नमदेव। रानी रुद्राम्बा ने अपने दौहित्र प्रतापरुद्र देव को गोद ले कर अपने राज्य का वारिस नियुक्त कर दिया। इस तरह प्रतापरुद्र देव ने काकतीय वंश की ध्वजा को मुसलिम आक्रांताओं द्वारा किये गये पतन तक थामे रखा। राजा प्रतापरुद्र चालुक्य पिता की संतति होने के बाद काकतीय कहलाये। अन्नमदेव चूंकि गोद नहीं लिये गये थे और वारंगल का पतन होने के पश्चात वे उत्तर की और पलायन कर गये एवं नागों को परास्त कर अपनी सत्ता कायम की अंत: उन्हें चालुक्य निरूपित किया जाना उचित व्याख्या है।  

तकनीकी रूप से तथा पितृसत्तात्मक समाज की व्याख्याओं के अनुरूत यह सत्य स्थापित होता है कि चालुक्य राजा से विवाह के पश्चात महारानी रुद्राम्बा का पिता की वंशावलि पर अधिकार समाप्त हो गया। तथापि भावनात्मक रूप से अथवा स्त्री अधिकारों पर विमर्श के तौर पर मुझे यह तथ्य रुचिकर प्रतीत होता है कि काकतीय वंशावली के रूप में यह राजवंश अधिक प्रमुखता से जाना गया है। यहाँ तक कि महारानी प्रफुल्ल कुमारी देवी (1921 - 1936 ई.) जिनका विवाह भंज वंश से जुड़े राजकुमार से किया गया था; तत्पश्चात के सभी वंशजों ने अपने नाम के साथ भंज अवश्य जोड़ा किंतु अंतिम महाराजा प्रवीर स्वयं को प्रवीर चंद्र भंजदेव ‘काकतीय’ कहलाना ही पसंद करते थे। 

- राजीव रंजन प्रसाद 

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