Wednesday, July 26, 2017

वायसराय से मुलाकात (बस्तर: अनकही-अनजानी कहानियाँ, भाग – 37)


ब्रिटिश-भारत के गवर्नर जनरल ‘द मार्कस ऑफ लिनलिथगो’, महारानी प्रफुल्ला से मुलाकात करना चाहते थे। यह भी पहला ही अवसर था जब इस आदिवासी राज्य के किसी शासक को ऐसी अहमियत दी गयी। सम्पूर्ण भारत के समतुल्य देखें तो अन्य राजाओं की तडक-भडक और वैभव प्रदर्शन जैसा बस्तर में कभी रहा ही नहीं। राजाओं-महाराजाओं में भी कोई फ़र्जन्द-ए-दिलबंद था तो कोई रासिखुल एतकाद; कोई दौलत-ए-ईंगलीशिया था तो कोई राजा-ए-राजगान; कोई मुज़फ्फर-ए-मुल्क था तो कोई आलीजाह। ब्रिटिश हुकूमत ने तत्कालीन राजे-रजवाडों को प्रसन्न रखने के लिये ऐसी ऐसी उपाधियाँ बाटी थीं जिन्हें अपने नाम के आगे लगाने की होड़ मची रहती थी जैसे – जी.सी.एस.आई (ग्रैंड़ क्रास ऑफ दि स्टार ऑफ इंड़िया ), जी.सी.आई.ई (ग्रैंड़ क्रास ऑफ दि इंडियन एम्पायर), के.सी.वी.ओ (नाईट कमांड़र ऑफ दि विक्टोरियन ऑर्डर) आदि आदि। राजाओं-महाराजाओं को नौ से ले कर इक्कीस तोपों तक की सलामी दी जाती थी। मैसूर, बडौदा, ट्रावनकोर, काशमीर, ग्वालियर के महाराजा तथा हैदराबाद के निजाम 21 तोपों की सलामी पाते थे तो ऐसे अनेकों थे जिन्हें 17, 13, 11 और 9 तोपों की सलामी मिला करती थी। लगभग 200 रियासतों के शासक ऐसे भी थे जिन्हें तोपों की सलामी नहीं मिला करती थी। बस्तर भी इन्ही में से एक श्रेणी की रियासत थी। 

अपने जीवनकाल में अनेको रियासतों के शासकों की कभी भी किसी वायसराय से मुलाकात संभव नहीं हो सकी थी। इसीलिये महारानी प्रफुल्ला कुमारी देवी जब वायसराय लिनलिथगो से मुलाकात करने पहुँची तो वे बातचीत के महत्व को समझ रही थीं। उनमें तड़क भड़क से अधिक सादगी ही प्रतिबिम्बित हो रही थी। परम्पराओं से अलग हट कर वायसराय ने आगे बढ़ कर महारानी का स्वागत किया। बातचीत राज्य की समस्याओं से अधिक बैलाड़िला के पहाड़ों पर केन्द्रित हो गयी। वायसराय का विचार था कि बस्तर राज्य के बैलाड़िला पर्वत का क्षेत्र हैदराबाद के निजाम को दे दिया जाना चाहिये। महारानी प्रफुल्ला ने अपनी इस संक्षिप्त मुलाकात में अनेकों बार वायसराय से हो रही चर्चा को बैलाड़िला  से हटा कर राज्य की मूल समस्याओं की ओर खींचने की कोशिश की। अंतत: यह मुलाकात मुलाकात भर रही – महत्वपूर्ण, लेकिन दोनो पक्षों के लिये बे-नतीजा। 

- राजीव रंजन प्रसाद 
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