मुगल शासकों ने बस्तर क्षेत्र पर अपनी मजबूत पकड़ क्यों हासिल नहीं की इसका कोई स्पष्ट कारण समझ नहीं आता। यद्यपि बस्तर तथा निकटवर्ती क्षेत्रों में मुसलमान आक्रांता काला पहाड के आक्रमण एवं लूटपाट के साक्ष्य प्राप्त होते हैं तथापि मुगल इस सघन वनांचल के प्रति उदासीन ही बने रहे। मुगलों के कमजोर पडने तथा मराठा शासकों के उत्थान के साथ बस्तर राज्य पर नागपुर की ओर से कई हमले किये गये किंतु अंग्रेजों के आगमन तथा कूटनीति प्रतिपादन के पूर्व तक यहाँ वे भी अपनी राजनैतिक हैसियत स्थापित नहीं कर सके थे। राजा दलपतदेव (1731-1774 ई.) के शासन समय में राज्य पर हो रहे लगातार हमलों से बचने के लिये राजधानी को ‘बस्तर’ से हटा कर ‘जगदलपुर’ ले जाया गया। आनन-फानन में मिट्टी के महल का निर्माण हुआ। तीन द्वार वाले नये नगर की दीवारे पत्थर और ईंट की थी। राजधानी के एक ओर विशाल सरोवर का निर्माण कराया गया जो नगर को सुन्दरता और सुरक्षा दोनों ही प्रदान करता था।
संभवत: यह राजा दलपतदेव की दूरदर्शिता थी जिन्होंने कठिन पर्वतीय क्षेत्रों, इंद्रावती नदी के विस्तार से तीन ओर से सुरक्षित राजधानी को विशाल झील बना कर सीधे आक्रमणों से सुरक्षित बना लिया था। वर्ष 1770 ई. में जगदलपुर दुर्ग बन कर तैयार हुआ। उल्लेख मिलता है कि लगभग इसी समय मुगल सेनाओं ने राजधानी जगदलपुर को चारों ओर से घेर लिया। एक उँचे से टीले पर दुर्ग को ध्वस्त करने के लिये तोप-खाना लगाया गया। मुगल सेनाओं से युद्ध करने जितनी क्षमता बस्तर के राजा में नहीं थी। देवी दंतेश्वरी की आरधना की जाने लगी तथा मुगलों के अगले कदम की प्रतीक्षा थी। कहा जाता है कि इसी बीच मुगल सैनिकों में कोई भयावह बीमारी फैल गयी; कठिन मार्ग तय कर बस्तर तक आने व लम्बी घेराबंदी किये रखने के कारण उनका रसद भी समाप्त हो गया था। मुगल सेनाओं ने बिना लड़े ही अपना घेरा हटा दिया (ग्लस्फर्ड - 1862; ग्रिग्सन- 1938)।
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