Wednesday, July 12, 2017

मामा भांजा और उनका मंदिर (बस्तर: अनकही-अनजानी कहानियाँ, भाग – 24)



गंग राजवंश (498 – 702 ई. के मध्य) का शासन क्षेत्र “बाल सूर्य” (वर्तमान बारसूर) नगर और उसके निकटवर्ती क्षेत्रों में सीमित था। इस राजवंश की शासन-प्रणाली तथा राजा-जन संबंधों पर बात करने के लिये समुचित प्रमाण, ताम्रपत्र अथवा शिलालेख उपलब्ध नहीं हैं तथापि गंग राजाओं का स्थान बस्तर की स्थापत्य कला की दृष्टि से अमर हो गया है। बालसूर्य नगर की स्थापना के पश्चात गंग राजाओं ने अनेकों विद्वानों तथा कारीगरों को आमंत्रित किया जिन्होंने राजधानी में एक सौ सैंतालीस मंदिर तथा अनेकों मंदिर, तालाबों का निर्माण किया। गंगमालूर गाँव से जुड़ा “गंग” शब्द तथा यहाँ बिखरी तद्युगीन पुरातत्व के महत्व की संपदाये गंग-राजवंश के समय की भवन निर्माण कला एवं मूर्तिकला की बानगी प्रस्तुत करती हैं। बारसूर में अवस्थित प्रसिद्ध मामा भांजा मंदिर गंग राजाओं द्वारा ही निर्मित है। कहते हैं कि राजा का भांजा उत्कल देश से कारीगरों को बुलवा कर इस मंदिर को बनवा रहा था। मंदिर की सुन्दरता ने राजा के मन में जलन की भावना भर दी। इस मंदिर के स्वामित्व को ले कर मामा-भांजा में युद्ध हुआ। मामा को जान से हाँथ धोना पड़ा। भाँजे ने पत्थर से मामा का सिर बनवा कर मंदिर में रखवा दिया फिर भीतर अपनी मूर्ति भी लगवा दी थी। आज भी यह मंदिर अपेक्षाकृत अच्छी हालत में संरक्षित है। आज का बारसूर ग्राम अपने खंड़हरों को सजोए अतीत की ओर झांकता प्रतीत होता है। 

- राजीव रंजन प्रसाद
==========


No comments: