Thursday, July 06, 2017

गंग राजवंश - सच भी और मिथक भी (बस्तर: अनकही-अनजानी कहानियाँ, भाग – 19)


अनेक घटनायें अतीत के पन्नों में दर्ज है जहाँ राजा प्रेम अथवा वासना में इस तरह डूबा रहा करता कि अंतत: गणिकाओं, दासियों तथा नगरवधुओं ने उनसे अपनी मनमानियाँ करवायी हैं तथा सत्ता पर अपने परिजनों अथवा पुत्र को अधिकार दिलाने में सफल हो गयी हैं। किसी समय ओड़िशा के जगन्नाथपुरी क्षेत्र के राजा गंगवंशीय थे। राजा की छ: संताने उनकी व्याहता रानियों से थी तथा एक पुत्र दासी से उत्पन्न था। गंगवंशीय राजा ने दासी पुत्र को सत्ता का अधिकारी बना दिया गया। अन्य छ: राजकुमार राज्य के बाहर खदेड़ दिये गये। कहा जाता है कि इनहीं में  से एक राजकुमार ने अपने साथियों के साथ शक्तिहीन हो रहे तत्कालीन नल-राजाओं के गढ़ महाकांतार के एक कोने में सेन्ध लगा दी तथा वहाँ बाल-सूर्य नगर (वर्तमान बारसूर) की स्थापना की। यह कथा तिथियों के अभाव में इतिहास का हिस्सा कहे जाने की अपेक्षा जनश्रुतियों की श्रेणी में ही वर्गीकृत रहेगी। 

पं. केदारनाथ ठाकुर (1908) ने अपनी किताब “बस्तर भूषण (1908)” में इस घटना का वर्णन किया है। अपनी इसी कृति में वे लिखते हैं “बारसूर के गंगवंशीय राजाओं के बनवाये हुए मंदिरों की बहुत सी मूर्तियाँ, पत्थरों व गरुडस्तम्भ से कालांतर में दंतेवाड़ा का दंतेश्वरी मंदिर बनवाया गया था। प्राचीन बस्तर क्षेत्र पर पूर्वी गंग वंश का शासन 498 – 702 ई. के मध्य रहा होगा। त्रिकलिंग क्षेत्र (जिसका हिस्सा कोरापुट-कालाहाण्डी एवं बस्तर के पर्वतीय परिक्षेत्र रहे हैं) से हो कर गंग शासकों ने बस्तर मे प्रवेश किया होगा एवं इस क्षेत्र में नल शासकों (600 – 760 ई.) के पतन के वे गवाह रहे थे। गंगवंश के सबसे प्राचीन ज्ञात शासक का नाम इंद्रवर्मन था जिसे गंग संवत्सर के प्रवर्तन का श्रेय भी दिया जाता है। 

- राजीव रंजन प्रसाद 

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