Sunday, July 23, 2017

भोंगापाल, बोधघाट और पुराने रास्ते (बस्तर: अनकही-अनजानी कहानियाँ, भाग – 35)


उत्तरापथ और दक्षिणापथ को जोडते वे कौन से प्राचीन मार्ग थे? क्या ये रास्ते बस्तर हो कर भी गुजरते थे? क्या बौद्ध और जैन धर्म के प्रचार प्रसार को आने, जाने और ठहरने वालों के लिये बस्तर में कहीं ठौर था। नारायण के निकट स्थित है भोंगापाल जहाँ केवल बस्तर अथवा छत्तीसगढ राज्य ही नहीं अपितु मध्य-भरत का एकमात्र ईंटों से बना विशाल चैत्य प्राप्त हुआ है। अध्येताओं का अनुमान है कि यहाँ ध्वंस ईंट निर्मित स्थल मौर्य युगीन है। यहाँ प्राप्त हुई सप्तमातृका की प्रतिमा मध्य कुषाण कालीन तथा गौतम बुद्ध की प्रतिमा गुप्तकालीन है। दुर्भाग्यपूर्ण कि इस स्थान की महत्ता पर अधिक कार्य नहीं हुआ है। अनेक संदर्भ इशारा करते हैं कि मौर्य सम्राट अशोक सर्वास्तिवादी शाखा के आचार्य उपगुप्त के उपदेशों से प्रभावित थे। यह सम्प्रदाय महासंधिकों की एक उपशाखा के रूप में प्रसिद्ध हुआ। भोंगापाल का बौद्धचैत्य भी इन्हीं चैत्य शिलावादी आचार्यों के धर्म प्रचार प्रसार एवं निवास का प्रमुख केंद्र रहा है। भोंगापाल के निकट स्थित जैतगिरि निश्चित ही चैत्यगिरि का बदला हुआ नाम है। इसी मार्ग के आगे की कडी जोडी जाये तो बारसूर के निकट बोधघाट है जो बौद्ध घाट से बिगड कर बना जान पडता है। 

उत्तरापथ से दक्षिणापथ को जोडने के प्राचीन मार्ग में निश्चित ही भोंगापाल की अपनी जगह और महत्ता लम्बे समय तक रही होगी। एक ओर दक्षिण कोसल तथा दूसरी ओर दक्षिण के अनेक राज्य होने के कारण की कतिपय खोजी कडियाँ जोडते हुए मानते हैं कि प्रसिद्ध बौद्ध आचार्य महादेव आंध्र व ओडिशा से जुडे बस्तर अंचल के भोंगापाल केंद्र से जुडे हो सकते हैं। भोंगापाल प्रतिमा के गुप्त कालीन होने से यह संभावना भी प्रबल होती है कि यहाँ से वही मार्ग गुजरता हो जहाँ से हो कर चौथी सदी में गुप्त सम्राट समुद्रगुप्त ने अपने विजय अभियान का रुख दक्षिणापथ राज्यों की ओर किया था। 

- राजीव रंजन प्रसाद
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