Saturday, July 29, 2017

राजा-प्रजा दोनो के नाम से राजधानी (बस्तर: अनकही-अनजानी कहानियाँ, भाग – 41)


राजाओं-महाराजाओं के नाम पर कितने ही नगर और शहर बसे हैं लेकिन ऐसे उदाहरण इतिहास में कम है जब प्रजा के नाम पर उन्होंने ऐसा किया हो। इसके ही अपवाद स्वरूप जगदलपुर शहर के बसने और उसके नामकरण की रुचिकर कहानी है। कहते हैं कि जगतुगुड़ा कभी केवल ग्यारह झोपड़ियों का छोटा सा गाँव, जिसके मुखिया का नाम जगतु माहरा था। वह राजा दलपतदेव (1731-1774 ई.) के शासन का समय था। उस दौर में निरंतर हो रहे मराठा आक्रमणों के दृष्टिगत एक सुरक्षित राजधानी स्थल की तलाश की जा रही थी। राजा दलपतदेव शिकार करते हुए इंद्रावती नदी के किनारे बसे गाँव जगतुगुड़ा पहुँचे जो घने जंगलों से घिरा हुआ था। एकाएक उनकी निगाह के आगे से आश्चर्य कर देने वाला दृष्य गुजरा। खरगोश एक शिकारी कुत्ते को निर्भीक हो कर दौड़ा रहा था। राजा सोच में पड़ गये, उन्हें लगा कि इस स्थान और यहाँ की मिट्टी में अवश्य कुछ विशेष है। कमजोर प्राणी यदि वीरता दिखा सकता है तो संभव है मराठा शासन के आक्रमणों से बचने के लिये यही स्थान सर्वश्रेष्ठ राजधानी सिद्ध हो। 

राजा ने वैकल्पिक भूमि प्रदान कर जगतुगुडा हासिल कर लिया। राजधानी को अपने विस्तार के लिये भू-भाग की आवश्यकता होती है। इसी क्रम में जगतु माहरा के छोटे भाई धरमू से भी उसके गाँव की भूमि प्राप्त की, जो जगतुगुडा से कुछ ही दूरी पर स्थित थी।  धरमू के गाँव वाले स्थान को उसके ही नाम पर धरमपुरा के नाम से आज भी जाना जाता है। नयी राजधानी का नाम इसके संस्थापक शासक दलपतदेव के नाम पर दलपतपुर नहीं अपितु वास्तविक भूस्वामि को समुचित सम्मान दे कर जगदलपुर रखा गया। जगदलपुर नाम में ‘जग’ जगतु का एवं ‘दल’ राजा दलपतदेव का परिचायक है।  प्रजा के नाम का राजा के नाम से पहले उपयोग किया जाना भी सुखद आश्चर्य उत्पन्न करता है। 

- राजीव रंजन प्रसाद 
==============

No comments: