Friday, July 14, 2017

सामाजिक दरारें और जान्तुरदास (बस्तर: अनकही-अनजानी कहानियाँ, भाग – 26)


नलकालीन बस्तर (760 ई. से 1324 ई.) में कई ऐसे उदाहरण सामने आते हैं जहाँ कर्म आधारित वर्ण व्यवस्था से सामना होता है। नल शासक भवदत्त वर्मा का ऋद्धिपुर ताम्रपत्र जिसके खनक थे पद्दोपाध्याय ब्राह्मण के बेटे बोपदेव  (पद्दोपाध्यायपुत्रस्य पुत्रेण बोप्पदेवेन क्षतिमिदं, ई.आई - XIX)। यह स्पष्ट है कि कर्म आधारित समाज की जो चर्चा होती है यह उसका अप्रतिम उदाहरण है। उस दौर की विवेचना करने पर यह असामन्य लगता है कि बोप्पदेव जो कि ब्राह्मण वर्ण के थे, उन्होंने खनक का कार्य किया होगा। इसी कड़ी में पोड़ागढ़ अभिलेख जुड़ता है जहाँ एक दास वर्ण के व्यक्ति कवितायें करते, राजा के लिये शिलालेखों की पद्य रचना करते नजर आते हैं। नल शासन समय के सर्वाधिक गौरवशाली शासक रहे स्कन्दवर्मा के पोड़ागढ़ प्रस्तराभिलेख के रचयिता हैं – जान्तुर दास। स्पष्ट है कि जान्तुर माँ काली के लिये प्रयुक्त होने वाला शब्द है जबकि दास वर्ण का परिचायक है। यह दास दमित-शोषित नहीं अपितु राज्याश्रय प्राप्त एक कवि है। जान्तुर दास की रची पंक्तियों पर दृष्टि डालें तो वह रस, छंद-अलंकार युक्त अद्भुत काव्य रचना प्रतीत होती है। रचना की भाषा संस्कृत है। पोड़ागढ़ अभिलेख के रचयिता जांतुर दास ने प्रशस्ति की रचना तेरह पद्यों में की है। रचनाकार की विद्वत्ता का उदाहरण उसके शब्द प्रयोगों से ही मिल जाता है। जान्तुर दास लिखते हैं - आजेन विश्वरूपेण निगुणिन गुणौषिणा (निर्गुण होते हुए भी गुण की आकांक्षा करने वाला), यह पद्य विरोधाभास अलंकार का अनूठा उदाहरण प्रस्तुत करता है। यह छंद देखें तथा इसमें अनुप्रास अलंकार की छटा को महसूस करें – कृत्वा धर्म्मार्थ निम्याशमिदमात्म हितैषिणा। पादमूलं कृतं विष्णो: राज्ञा श्रीस्कन्दवर्म्मणा।। इसी तरह उनके काव्य में प्रयुक्त शांत रस का यह उद्धरण देखें – हरिणा जितं जयति जेध्यत्येषा गुणस्तुतिन्नर्हगुणस्तुतिन्नर्हि सा। ननु भगवानेव जयो जेतव्यं चाधिजेता च।। पोड़ागढ़ अभिलेख के बारहवें पद्य में इस शिलालेख के लेखक जान्तुरदास का नाम भी अंकित किया गया है। यह दर्शाता है कि मानुषिक विभेद जैसी स्थिति नाग कालीन बस्तर में समुपस्थित नहीं थी। पाँचवी सदी का यह प्रस्तराभिलेख सामाजिक दरारों में मिट्टी डालता हुआ प्रतीत होता है। यह अभिलेख मांग करता है कि लगातार जातिगत विद्वेषों में बाटे जाने के लिये दिये जा रहे उदाहरणों पर ठिठक कर पुनर्विवेचनायें की जायें। जान्तुर दास एक अल्पज्ञात कवि ही सही लेकिन यदि उन्हें समझा जाये तो वे आज व्याप्त अनेकों मिथकों को तोड़ने में सक्षम हैं। 

- राजीव रंजन प्रसाद

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