Wednesday, July 05, 2017

शिक्षा, छात्रवृत्ति और संघर्ष (बस्तर: अनकही-अनजानी कहानियाँ, भाग – 17)


ब्रिटिश उपनिवेश काल में उपेक्षित और पिछडा हुआ बस्तर राज्य शिक्षा के जुगनुओं को दीपक बनाने के लिये जूझ रहा था। विद्यालयों की संख्या वर्ष दर वर्ष बढ रही थी। अंग्रेजों द्वरा राज्य को शिक्षा क्षेत्र के विकास के लिये बहुत सीमित बजट आबंटित किया जाता, इसके बाद भी विद्यार्थियों को आकर्षित करने के लिये कई योजनायें चलाई जा रही थी। बस्तर राज्य में प्राथमिक शिक्षा नि:शुल्क दी जाती थी। राज्य में मिशन स्कूलों को विशेष रिआयतें दी गयी थीं। दस्तावेजों के अनुसार जगदलपुर स्थित अंजुमन स्कूल को 300 रुपये तथा गर्ल्स क्रिश्चियन मिशनरी स्कूल को 500 रुपये वार्षिक अनुदान राज्य शासन की ओर से दिया जाता था। उन दिनों एक मात्र हाईस्कूल (ग्रिग्सन हाई स्कूल जिसका वर्तमान नाम बस्तर हाई स्कूल है) जगदलपुर में अवस्थित था तथा परीक्षा नागपुर बोर्ड द्वारा संचालित की जाती थी। राज्य के कोने कोने से बच्चे उच्च शिक्षा प्राप्त करने के उद्देश्य से जगदलपुर आते थे। हॉस्टल की तब कोई व्यवस्था नहीं थी जिसका विकल्प जमीदारो ने निकाला था। जगदलपुर में सभी जमीदारों के निजी बाडे तथा आवास थे जिन्हें उन्होंने अपने क्षेत्र के विद्यार्थियों के रहने और पठन-पाठन की सुविधा के लिये खोल दिया गया। जमीदारों की ओर से विद्यार्थियों को मासिक आर्थिक मदद भी की जाती थी। राज्य की ओर से जगदलपुर के एक छात्र राजेन्द्र दास को कलकत्ता के आयुर्वैदिक कॉलेज में अध्ययन के लिये तीस रुपये मासिक की छात्रवृत्ति पर भेजा गया था। छात्रवृत्ति प्रदान करने के लिये यह शर्त रखी गयी थी कि अध्ययन पूरा करने के पश्चात राजेंन्द्र दास को कम से कम एक वर्ष बस्तर में रह कर अपनी सेवायें प्रदान करनी होंगी।

- राजीव रंजन प्रसाद 
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