Monday, July 03, 2017

समुद्रगुप्त और कविता (बस्तर: अनकही-अनजानी कहानियाँ, भाग – 16)


इतिहासकार अगर कवि भी हो तो घटनाओं के विवरण अत्यधिक रोचक रूप में प्रस्तुत होते हैं। बस्तर के सुप्रसिद्ध इतिहासकार डॉ. के. के. झा ने समुद्रगुप्त पर पूरा खण्डकाव्य लिखा है। यह खण्डकाव्य समुद्रगुप्त के विजय ही नहीं उसके पश्चात उसे जीवन की निस्सारता पर हुए बोध को बेहद रुचिकर तरीके से प्रस्तुत करता है। डॉ. झा व्याग्रराज को नल शासक निरूपित करते हैं तथा यह मानते हैं कि समुद्रगुप्त ने युद्ध लड़ कर नहीं अपितु विवाह सम्बन्ध द्वारा प्राचीन बस्तर क्षेत्र पर अधिकार किया था। महाकांतार (प्राचीन बस्तर) क्षेत्र पर नलवंश के राजा व्याघ्रराज (350-400 ई.) की सत्ता का उल्लेख समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशास्ति से मिलता है। प्रस्तुत है डॉ. के के झा रचित खण्डकाव्य से संबंधित पंक्तियाँ - 

विशाल वन प्रांतर आवेष्ठित, दण्डकारण्य में था यह राज्य
गुरु शुक्राचार्य श्राप से कभी हुआ था निश्चित त्याज्य। 
समय फिरा फिर इस अरण्य का, रघुपति का जब हुआ आगमन, 
उनके अद्भुत वीर कृत्य से, राक्षस रहित हुआ था यह वन। 

सुख समृद्धि पुन: लौटी थी, नल-कुल शासित अंचल था 
सद्य: व्याघ्र राज राजा थे, उनका राज्य अचंचल था। 
युद्ध नहीं उनको अभीष्ठ था, स्वतंत्रता उनको प्रिय थी, 
उनकी शक्ति संधि चर्चा को गति देने को ही सक्रिय थी। 

परम-पवित्र परिणय पश्चात संधि सफल सम्पन्न हुई, 
सम्बन्धी सह मित्र भावना सहज रूप प्रतिपन्न हुई। 
व्याघ्रराज ने निज कन्या का दान किया गुप्त नृपवर को, 
नल-कुल में प्रसन्नता छाई, पाकर सर्वश्रेष्ठ वर को। 
व्याघ्रराज से मैत्री कर के अतिप्रसन्न थे मागध भूप, 
गरुड़ स्तम्भ स्थापित करवाया, इस मैत्री के प्रतीक स्वरूप।

- राजीव रंजन प्रसाद
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