Thursday, July 06, 2017

किरन्दुल गोली काण्ड – एक काला अध्याय (बस्तर: अनकही-अनजानी कहानियाँ, भाग – 18)


बैलाडिला लौह अयस्क परियोजना में खुली खदान से लोहा खोदने काम में लगभग बीस हजार ऐसे श्रमिक लगाये गये थे, जिनकी संविदा पर नियुक्ति होती थी। वर्ष 1978, अंतर्राष्ट्रीय इस्पात बाजार में मंदी का दौर था। जापान ने बैलाड़िला से अपने वार्षिक आयात में बीस लाख टन अयस्क की कटौती कर दी। बैलाड़िला खदान के प्रबंधकों ने श्रमिक प्रदान करने वाली कम्पनियों के अनुबंधों को उनके करार समय की समाप्ति के बाद नवीनीकृत करने में असमर्थता जाहिर कर दी। हजारो मजदूरों के सामने रोजी-रोटी का सवाल आ खड़ा हुआ। यह बीस हजार अ-संगठित श्रमिकों का मामला था। ‘संयुक्त खदान मजदूर संघ’, बैलाड़िला  माईंस में कार्य कर रहे ‘संगठित-श्रमिकों की रजिस्टर्ड़ यूनियन’ है। इसकी अध्यक्षता इन्द्रजीत सिंह कर रहे थे। उन्होंने मामले में हस्तक्षेप किया। दस मार्च से क्रमिक भूख हड़ताल का सिलसिला आरम्भ हुआ। दुर्ग जिले के मजदूर नेता गंगा चौबे ने जेल-भरो आन्दोलन की शुरुआत की। 

इकत्तीस मार्च को धारा-144 तोड़ते हुए, लाल झंड़ा हाथों में उठाये चार हजार मजदूर इकट्ठा हुए। पुलिस को कई बार लाठियाँ भाँजनी पड़ी, हालात नियंत्रण में रहे। एक अप्रैल को भीड़ फिर जुटी। आँसू-गैस के गोले दागे गये, हलका लाठीचार्ज भी हुआ। तीन अप्रैल को श्रमिक महिलायें भी आन्दोलन में कूद पड़ीं। प्रदर्शन पूरे बैलाड़िला क्षेत्र में फैल गया। चार अप्रैल की रात यूनियन लीड़र इन्द्रजीत सिंह की पत्नी को गिरफ्तार कर लिया गया। 5 अप्रैल को इंद्रजीत सिंह की गिरफ्तारी के लिये उनकी तलाश कर रहे पुलिस दल पर भीड़ ने हमला कर दिया जिसमें एक हैड कॉन्स्टेबल की मौत हो गयी। आनन-फानन में अतिरिक्त पुलिस बल किरन्दुल बुला लिया गया। दोपहर के बारह बजे थे। श्रमिक बस्ती में आग की उँची उँची लपटे उठती देखी गयी। जान बचा कर भागते श्रमिकों पर गोलीयाँ चलती रही। कुछ ही पलों बाद जहाँ हजारो झुग्गियो की बस्ती हुआ करती थी वहाँ मैदान रह गया। 

- राजीव रंजन प्रसाद
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