Friday, July 21, 2017

स्त्री प्रशासक नाग राजकुमारी मासकदेवी (बस्तर: अनकही-अनजानी कहानियाँ, भाग – 33)


बस्तर को समझने के विमर्श में आम तौर पर लोग मासकदेवी को लांघ कर निकल जाते हैं; संभवत: इसी लिये इस महत्वपूर्ण स्त्रीविमर्श के अर्थ से अबूझ रहते हैं। दंतेवाड़ा में छिंदक  नाग वंशीय शासकों से सम्बंधित एक शिलालेख मिलता है जो कि तत्कालीन राजा की बहन मासक देवी के नाम से जारी किया गया है। शिलालेख का समय अज्ञात है किंतु उसमें सर्व-साधारण को यह सूचित किया गया है कि – “राज्य अधिकारी कर उगाहने में कृषक जनता को कष्ट पहुँचाते हैं। अनीयमित रूप से कर वसूलते हैं। अतएव प्रजा के हितचिंतन की दृष्टि से पाँच महासभाओं और किसानों के प्रतिनिधियों ने मिल कर यह नियम बना दिया है कि राज्याभिषेक के अवसर पर जिन गाँवों से कर वसूल किया जाता है, उनमें ही एसे नागरिकों से वसूली की जाये, जो गाँव में अधिक समय से रहते आये हों”। इस अभिलेख के कुछ शब्दों पर ठहरना होगा वे हैं – महासभा, किसानों के प्रतिनिधि तथा कर। संभवत: यह महासभा पंचायतों का समूह रही होंगी जिनके बीच बैठ कर मासकदेवी ने समस्याओं को सुना, किसानों ने गाँव गाँव से वहाँ पहुँच कर अपना दुखदर्द बाँटा होगा। इस सभा को शासन द्वारा नितिगत निर्णय लेने की स्वतंत्रता दी गयी होगी जिस आधार पर मासकदेवी ने अपनी अध्यक्षता में ग्रामीणों और किसानों की बातों को सुन कर न केवल समुचित निर्णय लिया अपितु शिलालेख बद्ध भी कर दिया। शिलालेख का अंतिम वाक्य मासकदेवीको मिले अधिकारों की व्याख्या करता है जिसमे लिखा है - ‘जो इस नियम का पालन नहीं करेंगे वे चक्रकोट के शासक और मासकदेवी के विद्रोही समझे जायेंगे’।

मासकदेवी एक उदाहरण है जिनको केन्द्र में रख कर प्राचीन बस्तर के स्त्री-विमर्श और शासकों व शासितों के अंतर्सम्बन्धों पर विवेचना संभव है। यह जानकारी तो मिलती ही है कि लगान वसूल करने में बहुत सी अनीयमिततायें थी। साथ ही सुखद अहसास होता है कि तत्कालीन प्रजा के पास एसी ग्रामीण संस्थायें थी जो शासन द्वारा निर्मित समीतियों से भी सीधे जुड़ी थी। प्रतिपादन की निरंकुशता पर लगाम लगाने का कार्य महासभाओं में होता था तथा नाग युग यह उदाहरण भी प्रस्तुत करता है कि अवसर दिये जाने पर स्त्री हर युग में एक बेहतर प्रशासक सिद्ध हुई है।

- राजीव रंजन प्रसाद

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