Friday, July 28, 2017

अंग्रेजों वाला विकास (बस्तर: अनकही-अनजानी कहानियाँ, भाग – 40)


रायबहादुर पंडा बैजनाथ (1903 – 1910 ई.) बस्तर राज्य में अधीक्षक की हैसियत से नियुक्त हुए थे। वे अंग्रेजों द्वारा प्रसारित विकास की परिभाषा से अक्षरक्ष: सहमत थे और अपनी सोच के प्रतिपादन को ले कर कट्टर भी। यह उनका अतिउत्साह था कि जगदलपुर से चांदा जाने वाली सड़क सन 1904 में पूरी कर ली गयी। सन 1907 ई. तक अतिदुर्गम मार्ग कोंडागाँव-नारायणपुर-अंतागढ़, तक सड़क बना ली गयी थी जिसे बाद में डोंडीलोहारा होते हुए राजनांदगाँव तक बढ़ा दिया गया। पण्डा बैजनाथ के कार्यकाल में धमतरी से जगदलपुर तक टेलीग्राफ लाईन बिछाने का काम जोरों से चल रहा था। बाहर-बाहर बदलाव महसूस हो रहा था; भीतर-भीतर राज्य में गहरी शांति थी। व्यवस्था और जनता के बीच कुछ टूट गया। व्यवस्था, आवरण और चेहरा बदलने में लगी रही और आवाम चौंधियाई आँखों से देख रहा था कि इस सबमें उसका अस्तित्व कहाँ है? सड़क पर उसे डामर की तरह पिघलाया जा रहा है जबकि उसके पसीने की कोई कीमत नहीं? बिना दाम में उत्तम काम पराधीन देश में भी केवल बस्तर राज्य में संभव था। पंडा बैजनाथ का प्रशासन निरंकुशता का द्योतक था जबकि उनके कार्य प्रगतिशील प्रतीत होते थे। उदाहरण के लिये शिक्षा के प्रसार के लिये उन्होंने उर्जा झोंक दी किंतु इसके लिये आदिवासियों को विश्वास में लेने के स्थान पर शिक्षकों को निरंकुश बना दिया। पुलिस को बच्चों को जबरदस्ती विद्यालय में पहुँचाने के निर्देश दिये गये। बालक के विद्यालय न जाने की स्थिति में उसके पालक को सजा दी जा रही थी। इधर उनके द्वारा अंग्रेजों की निर्मित वन नीति के सख्ती से प्रतिपादन के बाद आदिवासियों के पास ऐसी कोई वस्तु शेष नहीं रही थी जिसे बेच कर वे व्यापारियों से नमक, कपड़ा, तेल या इसी तरह की दूसरी आवश्यक वस्तुओं को प्राप्त करें। यह सबकुछ सुलग कर वर्ष 1910 के महान भूमकाल का कारण बना। भूमकाल के दौरान विद्रोही लगातार पंडा बैजनाथ की तलाश कर रहे थे लेकिन वे किसी तरह राज्य मे बाहर निकल पाने में सफल हो गये। 

- राजीव रंजन प्रसाद  

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