Sunday, June 04, 2017

हमारा किताबी आपदा प्रबंधन और माउंट सेंट हेलेन्स ज्वालामुखी



माउंट हेलेन्स का जिक्र करते हुए मैं जवालामुखी और उसकी विभीषिकाओं पर बात नहीं करना चाहता अपितु मेरी चिंता है कि प्रकृति और प्राकृतिक घटनाओं को देखने का हमारा नजरिया क्या होना चाहिये? क्या प्राकृतिक घटाओं और उनकी विभीषिकाओं को भी विद्यार्थियों और आने वाली पीढी के लिये सहेज कर रखना आवश्यक है? क्या पर्यावरण को समझने के लिये हमें प्राकृतिक घटनाओं के प्रति नितांत संवेदनशील होना चाहिये? क्या इस तरह हम प्राकृतिक आपदा का प्रबंधन करने में भी समर्थ हो सकते हैं? कुछ वर्षों पहले मैं अमेरिका के पोर्टलैण्ड (ऑरेगॉन) गया था और ज्वालामुखी पर्वत माउंट हेलेन्स को निकट से देखने का अवसर मिला। रह रह कर धुँवे और राख उगलने वाला यह ज्वालामुखी दशकों के अंतराल में अचानक सक्रिय हो जाता है और अपनी उपस्थिति का अहसास कराने के पश्चात पुन: ध्यान की अवस्था में चला जाता है। उपर बर्फ और भीतर आग का अभिनव समागम है माउंट हेलेन्स, जिसे निहारते हुए प्रकृति की सुंदरता और ताकत का इस तरह अहसास होता है कि मनुष्य के सर्वे-सर्वा होने का अहं धराशायी हो जाये। 

विषय पर आने से पहले थोडी बात बात मिथकों और किम्वदंतियों की। केवल भारत के पर्वत, नदी-नाले और समुन्दर ही कथा-कहानियों से नहीं जुडे बल्कि पूरी दुनियाँ ही जिन रहस्यों को समझ नही पाती उसका उत्तर दंतकथाओं में तलाशती है। अमेरिकी मानते हैं कि कोलम्बिया नदी की सैर पर महान आत्मा के दो पुत्र जब साथ निकले तो सुंदरता से प्रभावित उन्होंने यहीं बसने का निर्णय ले लिया। कुछ समय साथ रहने के पश्चात दोनों ही बेटों में अहं का टकराव हुआ और भूभाग पर अधिकार के लिये लड़ाई होने लगी। आखिर महान आत्मा पिता ने बीच बचाव करते हुए दोनो के बीच भूभाग का बटवारा कर दिया। उन्होने उत्तर और दक्षिण दिशा में दो तीर चला कर कोलम्बिया घाटी भूभाग का सीमांकन किया तथा दोनो ही बेटों के अधिकार क्षेत्रों के बीच उनसे मिलने जाने के उद्देश्य से पुल बना दिया। अब जमीन को ले कर लडाई बंद हुई तो स्त्री को ले कर आरम्भ हो गयी। एक ही सुंदर लड़की से दोनो भाई प्रेम करने लगे और उसे पाने के लिये लड़ने भिडने का जो सिलसिला आरम्भ हुआ उससे पूरी कोलम्बिया घाटी तबाह हो गयी यहाँ तक कि पुल भी नष्ट हो गया। इस विनाशलीला से नाराज महान आत्मा ने तीनों प्रेमियों को पर्वत में बदल दिया और उन्हें बर्फ से ढक दिया,  ये तीन पर्वत हैं माउंट सेंट हेलेन्स (प्रेमिका), माउंट हुड तथा माउंट एडम्स। प्रेमियों के हृदय की अग्नि को बर्फ क्या दबाये रख सकता है? इसी लिये गाहे - बगाहे वे अपने भीतर की सुलगन से पूरी दुनिया को आगाह करते रहते हैं। 
  
इन कहानियों में संवेदनाओं के अनेक निहितार्थ छिपे हुए हैं लेकिन उनसे उपर है प्रकृति की वे अभिक्रियायें जिनसे उसके सर्वशक्तिमान होने का बोध होता है। हजारों धुँआ उलगती फैक्ट्रियों, नदियों को मल-मूत्र से भर देने वाले शहरों और रासायिन खाद से खेतों को जला कर राख कर देने वाली वर्तमान मान सभ्यता को कभी कभी ही यह अहसास होता है कि उससे पहले डायनासोर भी इस धरती पर अपना मालिकाना हक समझते थे लेकिन वे नहीं बचे। ज्वालामुखी विस्फोट प्रकृति की मनुष्य सभयता को चेतावनी है। बात आगे बढाने से पहले एक अमेरिकी बच्चे की कविता का अनुवाद अवश्य पढाना चाहता हूँ – 

चलो बहता लावा देखें 
यह समय है कि आकाश हो जाये रौशन 
आओ महसूस करें उडती हुई राख की धूम
माउट सेंट हेलेन्स पर आज रात 
बूम! बूम!! बूम!! बूम!!!! 

अमेरिकी बच्चों के मन में ज्वालामुखी को ले कर जो कल्पनायें है वे साकार इसलिये हो उठी कि उन्होंने निकटता से इस भू-वैज्ञानिक घटना को देखा है। ज्वलामुखी और भूकम्प टाले नहीं जा सकते और मनुष्य केवल उनसे होने वाले विनाश तथा निर्माण को महसूस भर कर सकता है। १८ मई वर्ष १९८० को हुए माउंट हेलेन्स ज्वालामुखी विस्फोट में मानव हानि के अतिरिक्त लाखो  जीव जंतु तथा जल जंतु की हानि हुई हजारो हेक्टेयर भूमि पर लपलपाते लावा के डैने पसर गये और धूल धुँवे का अम्बार फैल गया। समय पर्यंत राहत और बचाव कार्य चलते रहे, तथा धीरे धीरे बदले हुए वातावरण को स्वीकार करता हुआ जीव-जगत यहाँ पुन: अपनी सक्रियता दर्शाता देखा जा सकता है। अब अमेरिकी प्रशासन ने ज्वालामुखी और आसापास के बहुत बड़े क्षेत्र को बसाहट विहीन तथा मानवीय दखल से दूर कर दिया है। राहत कार्य के पश्चात यह पूरा संरक्षित इलाका जैसे थे वाली अवस्था में रखा गया है अर्थात लावा प्रवाह के दौरान अगर कोई पेड झुलस गया, कोई वाहन दब गया, कोई मकान चपेट में आ गया, कोई तालाब लावा से भर गया तो उसकी क्या अवस्था हुई वह आज भी देखा और महसूस किया जा सकता है। हमारी प्राथमिक चट्टानों के निर्माता लावा ही हैं तथा कोई छात्र आसानी से स्त्रोत से लावा के बहने के तरीकों उनके विस्तार तथा जमने के दौरान एवं बाद में होने वाले प्रभावों को देख-महसूस कर सकता है।

मैं माउंट सेंट हेलेन्स को देख कर रोमांचित इसलिये हो सका चूंकि प्रकृति क्या, कितना और किस तरह कर सकती है सब कुछ आँखों के सामने ही देख रहा था। क्या हम भारतीय ऐसी प्राकृतिक घटनाओं को जिससे लड-पाना हमारी क्षमता के बाहर है, उसे समझने के लिये इसी तरह सहेजने वाला दृष्टिकोण भी रखते हैं? हम अवैध खनन और अन्धाधुंध प्रकृति का दोहन करने वाले लोग जब तक अपनी धरती और उसकी गतिविधियों को ठीक उसी तरह समझने की कोशिश नहीं करेंगे जैसे कि कोई डॉक्टर मरीज की दिल की धडकनों को…..तब प्राकृतिक आपदाओं से लडने-बचने की समझ हमारे भीतर विकसित नहीं होगी। भारत ज्वालामुखी वाला देश भले ही न हो लेकिन उससे जनित सुनामी जैसी आपदाओं को झेलता रहा है। लगभग पूरा देश खास कर हमारा हिमालयी हिस्सा भूकम्प की प्रबल सम्भावनाओं से डरा-सहमा रहता है। माउंट सेंट हेलेंस का प्राकृतिक घटना संग्रहालय हमें समझ प्रदान करता है कि समय रखते हमारे शोध तथा प्रयास भी इसी दिशा में जाने चाहिये। प्रकृति रौद्र रूप क्यों धारण करती है इसे समझने का अगर हमारे पास समय नहीं है तो विनाश से बचने का कोई उपाय भी नहीं होगा। विश्व के अन्य देशों की तुलना में तूफान, भूकम्प, बाढ, सुनामी जैसी आपदाओं में भारत में अपेक्षाकृत आधिक जान-माल की हानि होती है क्योंकि हमारा आपदा प्रबंधन किताबी है।  

- राजीव रंजन प्रसाद 
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