Saturday, June 24, 2017

सुकमा के रामराज और रंगाराज (बस्तर: अनकही-अनजानी कहानियाँ, भाग – 7)


बस्तर पर चालुक्य/काकतीय राजाओं के अधिकार के पश्चात सुकमा के जमींदारों ने वहाँ के राजाओं से हमेशा वैवाहिक सम्बन्ध बना कर रखे इस कारण इस जमींदारी का न केवल महत्व बढ़ा अपितु यह शक्तिशाली भी हुआ। विवरणों के आधार पर कहा जा सकता है कि सुकमा की नौ राजकुमारियों का विवाह बस्तर के राजकुमारों के साथ सम्पन्न हुआ था, दहेज में कुवाकोण्डा, कटेकल्याण, प्रतापगिरि, छिंदावाड़ा, टहकवाड़ा, कोकापाड़ा, कनकपाड़, कुकानार, सलीमनगर और कोड़ता गाँव दिये गये थे। मुख्य रूप से राजकुमारी जानकीकुँवर का विवाह राजा भैरमदेव से, रुद्रकुँवर का विवाह राजा रक्षपालदेव से तथा कमलकुँवर का विवाह राजा दलपतदेव से होने के विवरण प्राचीन दस्तावेजों से प्राप्त होते हैं। सुकमा जमीदारी से जुडी अनेक रोचक कथायें हैं जिसमें प्रमुख है राजतंत्र की समाप्ति तक सुकमा के जमींदारों की लगभग 11 पीढ़ी में नाम क्रमिकता में रामराज और रंगाराज ही रखा जाना।

सुकमा के तहसीलदार ने 25 अगस्त 1908 को बस्तर रियासत के दीवान पंड़ा बैजनाथ को एक पत्र भेजा था। इस पत्र मे एक दंतकथा का उल्लेख मिलता है जिसके अनुसार पाँच सौ वर्ष पहले जब रंगाराज यहाँ शासक थे उनके चार पुत्र -  रामराज, मोतीराज, सुब्बाराज तथा रामराज, राज्य को ले कर विवाद कर बैठे। विवश हो कर सुकमा जमीन्दारी के चार हिस्से किये गये जो थे सुकमा, भीजी, राकापल्ली तथा चिन्तलनार। कहते हैं राजा ने इसके बाद अपने पुत्रों को शाप दिया कि अब सुकमा की गद्दी के लिये एक ही पुत्र बचेगा साथ ही आनेवाली पीढ़ियों के केवल दो ही नाम रखे जायेंगे रामराज और रंगाराज।
        
- राजीव रंजन प्रसाद 
===========  

No comments: