Friday, June 23, 2017

एक हथिनी के लिये खिंच गयीं तलवारें (बस्तर: अनकही-अनजानी कहानियाँ, भाग – 6)


कभी दक्षिण बस्तर में हाथी  बहुतायत में थे। राज्य की सीमा के भीतर अवैध रूप से हाथी पकड़ने को ले कर बस्तर तथा जैपोर राज्य (वर्तमान ओडिशा में स्थित) के बीच प्राय: तनाव अथवा युद्ध जैसी स्थिति बन जाया करती थी। जैपोर राज्य के कुशल शिकारी बस्तर में हाथी पकड़ने के लिये प्रशिक्षित हथिनियों का प्रयोग करते थे। उल्लेख मिलता है कि राजा भैरमदेव के शासन समय में एक बार बस्तर के अधिकारी जयपोर से भेजी गयी हथिनी को अपनी सीमा के भीतर पकड़ने में कामयाब हो गये। अब दोनो ही राज्य इस हथिनी पर अपना दावा करने लगे और बीचबचाव अंग्रेज अधिकारी मैक्जॉर्ज को करना पड़ा। अंग्रेज अधिकारी ने हथिनी को सिरोंचा (वर्तमान महाराष्ट्र में स्थित) बुलवा लिया तथा बस्तर के दावे को खारिज करते हुए उसे जैपोर राज्य को लौटा दिया।  

कभी जिस जीव को ले कर विवाद की स्थिति बनती थी आज पूरे बस्तर संभाग के किसी जंगल में हाथी नहीं पाया जाता। कभी वन भैंसे बस्तर की पहचान थी, अंग्रेज शिकारियों ने इस जीव का समूल नाश कर दिया। एक पुराना संदर्भ मुझे बस्तर के जंगलों में किसी समय गेंडा पाये जाने का प्राप्त हुआ है। इन्द्रावती नदी अपनी पूरी यात्रा में बहुत से ऐसे स्थान निर्मित करती है जो गेंडे के लिये स्वाभाविक आश्रय स्थल रहा करते होंगे। भैंसा दरहा जैसे क्षेत्र न केवल जंगली भैंसे बल्कि गेंडे के लिये भी अच्छा हेबीटाट प्रतीत होते हैं। अगर इन संदर्भों के दौर के बस्तर में लौटे तो कल्पना कीजिये कि तब से आज तक कितनी अनमोल जैव-विविधता यहाँ नष्ट हो गयी है?

- राजीव रंजन प्रसाद 
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