भोपालपट्टनम की वर्तमान संकल्पना पिछडेपन और उपेक्षा का जो चित्र सामने लाती है इसके ठीक उलट रियासतकाल में यह एक प्रगतिशील जमीदारी थी। इस जमीदारी का मुख्यालय भोपालपट्टनम नगर था जहाँ वर्ष 1908 से पूर्व ही राजमहल, अस्पताल, स्कूल, पोस्ट ऑफिस, पुलिस कार्यालय, इन्जीनियर कार्यालय एवं तहसील कार्यालय बनाये गये थे। भोपालपट्टनम को सड़क मार्ग से जगदलपुर से जोड़ दिया गया था (केदारनाथ ठाकुर, 1908)। वर्ष 1910 के पूर्व एक स्थाई पुल इंद्रावती नदी पर निर्मित था जो इस अंचल को सिरोंचा, चाँदा तथा नागपुर से जोडता था (महान भूमकाल के दौरान यह पुल क्षतिग्रस्त हो गया था)। रिकॉर्ड बताते हैं कि श्रीकृष्ण पामभोई के कार्यकाल के दौरान कारण उनकी जमींदारी मेनेजमेंट के तहत थी। उस दौरान 147 एकड़ बंजर भूमि को कृषि योग्य भूमि में परिवर्तित किया गया और 4300 रुपये तकाबी ऋण के रूप में किसानों मे वितरित किया गया (एडमिनिस्ट्रेशन रिपोर्ट 1954, अप्रकाशित)। जमींदार की आय का मुख्य स्त्रोत सागवान जैसी कीमती इमारती लकड़ियाँ एवं वनोपज थे। गोदावरी तथा इन्द्रावती नदी मार्ग से निर्यात किया जाता था। राजधानी भोपालपट्टनम में उस दौर में समुचित विद्युत व्यवस्था उपलब्ध थी। नगर में बिजली का वितरण जमीदार की ओर से किया जाता था जिसके लिये एक जेनरेटर महल परिसर में स्थापित किया गया था। स्वतंत्रता प्राप्त हुई, जमीदार भी प्रजा हो गये। भोपालपट्टनम जमीदारी के पास रहा जेनरेटर बेच दिया गया और इसके साथ ही पूरा नगर अंधेरे में डूब गया था। इस अंधकार के कई दशक बाद भोपालपट्टनम में बिलजी पहुँचाई जा सकी थी।
- राजीव रंजन प्रसाद
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