Sunday, June 25, 2017

जब असफल रहा अंग्रेज जासूस (बस्तर: अनकही-अनजानी कहानियाँ, भाग – 8)




18 जनवरी 1795 को अंग्रेज जासूस कैप्टन जे डी बलण्ट, चुनारगढ़ होते हुए कांकेर रियासत में प्रविष्ठ हुआ। ईस्ट इंड़िया कम्पनी यहाँ के जंगलों की जानकारी चाहती थी। उसे बस्तर राज्य की सामाजिक-भौगोलिक जानकारियाँ जुटाने के उद्देश्य से भेजा गया था। कोरिया, मातिन, रतनपुर और रायपुर जैसी बड़ी जमीन्दारियों को पार करता हुआ वह कांकेर पहुँचा। कांकेर रियासत के राजा शामसिंह ने कैप्टन ब्लण्ट की आगवानी की। कैप्टन ब्लण्ट का बस्तर राज्य के भीतर स्वागत नहीं था। राजा दरियावदेव ने बस्तर राज्य को रहस्यमयी बना दिया था। आसानी से किसी भी अपरिचित आगंतुक को पार-पत्र प्रदान नहीं किया जाता था। अंग्रेज जासूस ने भोपालपट्टनम की ओर से बस्तर में चुपचाप प्रवेश करने का निश्चय किया। अभी वे सीमा के भीतर सौ गज की दूरी ही तय कर पाये थे कि झाडियों की ओट से दसियों आदिवासी सामने आ गये, सभी के कंधे पर धनुष और हाँथों में वाण। झाड़ियों में होती हुई सरसराहट ने सभी को सिहरा दिया। रह रह कर “टोम्स-टोम्स” की अस्फुट आवाजें उन तक पहुँच रही थी। ब्लण्ट के इशारे पर साथ आये सैनिकों ने पोजीशन ले कर बंदूख तान लिया। एक चेतावनी से भरा तीर कैप्टन ब्लण्ट के निकट से हो कर गुजर गया। भयभीत सैनिक भी गोलियाँ चलाने लगे। ब्लण्ट देख रहे थे कि गोली से घायल साथियों को घसीट कर ले जाते हुए आदिवासी जंगल की ओर लौट रहे हैं। अंग्रेज अफसर ने तुरंत ही पीछे हटना उचित समझा। रात्रि में ही वे गोदावरी के तट पहुँचे और अरपल्ली की जमीन्दारी में प्रवेश कर गये। इसके साथ ही ब्लण्ट का बस्तर राज्य के भ्रमण का हौसला टूट गया था। 

- राजीव रंजन प्रसाद 
===========



No comments: