Thursday, June 29, 2017

नक्सलवाद – पहली विफलता और पहली सफलता (बस्तर: अनकही-अनजानी कहानियाँ, भाग – 12)


बस्तर में नक्सलवाद की प्रथम असफल दस्तक वर्ष 1967 में सुनाई पड़ी थी। आंध्रप्रदेश की ओर से प्रवेश कर नक्सलवादियों द्वारा पहली बड़ी कार्रवाई दिनांक 19 जनवरी 1981 को ग्राम गंगलेर थाना, गोलापल्ली में की गयी। प्रधान आरक्षक जगदीश नारायण सिंह पर चार नक्सलवादियों ने घात लगा कर हमला किया। जगदीश नारायण सिंह ने बहादुरी से फायरिंग का मुकाबला लिया। नक्सली जंगल की आड ले कर भाग निकले तथा कोई भी हताहत नहीं हुआ। इस घटना के लगभग चार वर्ष पश्चात मुखबिर के माध्यम से थाना पखांजुर में नक्सलियों के गाँव में आने की सूचना मिली जिसका नेतृत्व गणपति कर रहा था। थाना पखांजुर में दर्ज अपराध क्रमांक 36/85 दिनांक 5 मार्च 1985 के अनुसार उस दिन सुबह 11 बजे प्राप्त सूचना के आधार पर पुलिस द्वारा सतर्कता के साथ घटना स्थल की घेराबंदी की गयी। गणपति दल ने नक्सलियों ने स्वयं को घिरा पा कर प्रतिवाद में फायरिंग आरम्भ कर दी। नक्सली लीडर घटनास्थल पर ही मारा गया जबकि उसके अन्य सभी भागने में सफल हो गये। 

नक्सलवादियों को अपने किसी हमले में पहली सफलता थाना बीजापुर में मिली। दिनांक 11 अगस्त 1988 को गाँव करकेली से किसी प्रकरण की विवेहना कर प्रधान आरक्षक कल्याण सिंह, आरक्षक रैनू राम, आरक्षक राजेंद्र सिंह परिहार लौट रहे थे। रास्ते में एम्बुश लगाये नक्सलियों ने उन्हें निशाने में ले कर और घेर कर फायरिंग आरम्भ कर दी। निशाना ले कर पुलिस पर फायर करना आरम्भ कर दिया। दोनो ओर से गोलियाँ चलने लगीं किंतु इस अचानक हमले के लिये तैयार न रहने के कारण प्रधान आरक्षक कल्याण सिह की जांघ में,  आरक्षक राजेंद्र सिंह परिहार के गले में तथा आरक्षक रैनू राम के हाथ में गोली लगी। इस घटना में राजेंद्र सिंह परिहार शहीद हो गये।  

- राजीव रंजन प्रसाद 

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