निर्जन में पायल की छम पर |
शायद वीरानों के दिल में |
हिरण कुलीचे भरता होगा |
मटकी तेरे सिर पर और |
ठीक कमर की लचक जहां पर |
छल छल कर छलका करती जब |
तुझको भिगा भिगा जाती है |
दूर पहाडों की सिसकी पर |
हवा चुहुल से मुस्काती है |
पेडों की छाती पर जैसे |
कोई चला कुल्हाड रहा हो |
तेरे हलके पांव संभल कर |
अलसायी घासों के सर पर |
सहलाते से पड जाते हैं |
जल कर पेडों की फुनगी के |
हाथ मसलते ताज़ा पत्ते |
तुझे बुलाते हिल जाते हैं |
तुझको लेकिन खबर नहीं है |
कि तूफान तुम्हारे पीछे |
क्या हलचल करता आया है |
खामोशी का खामोशी से |
कत्ल किया चलता आया है.. |
*** राजीव रंजन प्रसाद |
२५.११.१९९५ |
Sunday, June 22, 2008
खामोशी का खामोशी से कत्ल..
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11 comments:
आपकी कविता पढ़ी ,जिसमे बस्तर की वादियों मे व्याप्त खामोश वादियों की चीख सुने दे रही है,आपके कविताओ मे बस्तर के अंतर्मन का बारीक़ चित्रण है ,बहुत बढ़िया कविता करते है आप,
तुझको लेकिन खबर नहीं है
कि तूफान तुम्हारे पीछे
क्या हलचल करता आया है
खामोशी का खामोशी से
कत्ल किया चलता आया है..
वाह क्या बात है, बहुत बढ़िया
दूर पहाडों की सिसकी पर
हवा चुहुल से मुस्काती है
पेडों की छाती पर जैसे
कोई चला कुल्हाड रहा हो
bhut khub.sundar rachana ke liye badhai.
मटकी तेरे सिर पर और
ठीक कमर की लचक जहां पर
छल छल कर छलका करती जब
तुझको भिगा भिगा जाती है
दूर पहाडों की सिसकी पर
हवा चुहुल से मुस्काती है
पेडों की छाती पर जैसे
कोई चला कुल्हाड रहा हो
kya kahu bahut hi khubsurat,bahut bahut badhai
बहुत बढिया एवं रुचिकर कविता। आपकी इस कविता पर यह पंक्तियां कहने का मन करता है।
दीपक भारतदीप
...................................................
हमारी जिंदगी में आये वह हवा बनकर
इसलिये छोड़ जायेंगे कभी
इसका तो अनुमान था
पर छोड़ जायेंगे अपने पीछे
एक बहुत बड़ा तूफान
हमारे लड़ने के लिये
इसका गुमान न था
आये थे तो वह आहिस्ता आहिस्ता
कदम अपने बढ़ाते हुए
अपनी कमर मटकाते हुए
हमें देख रहे थे आंखें नचाते हुए
कुछ पल के साथ में लगा कि
कि वह उम्र भर नहीं जायेंगे
सदा पास रह जायेंगे
पर अपना काम निकलते ही
जो उन्होंने अपना मूंह फेरा
जिंदगी घिर गयी झंझावतों मेंं
जिसका कभी पूर्वानुमान न था
..............................
खामोशी का खामोशी से
कत्ल किया चलता आया है..
-क्या बात है!! वाह!
बहुत सुंदर! आपकी रचनाओं में एक अजीब सी कशिश है।
‘दूर पहाडों की सिसकी पर
हवा चुहुल से मुस्काती है
पेडों की छाती पर जैसे
कोई चला कुल्हाड रहा हो’
और अंतिम पंक्तियां
'तुझको लेकिन खबर नहीं है
कि तूफान तुम्हारे पीछे
क्या हलचल करता आया है
खामोशी का खामोशी से
कत्ल किया चलता आया है..’
बहुत ही पसंद आईं। बधाई हो।
तुझको लेकिन खबर नहीं है
कि तूफान तुम्हारे पीछे
क्या हलचल करता आया है
खामोशी का खामोशी से
कत्ल किया चलता आया है..
waah...bahut sundar.bahut badhiya chitran hain.
yaar raajiv ji....kyaa likhate hain aap...ekdum hum gadgad ho jate hain....abhi blogs pe jitane ul-jalul kism ke kavitayen bhar gayi hain..unke bich aapki kavita sukhad jhonke see lagati hai. bahut badhiya....shashah badhai dost
क्या बात है खामोशी का खामेशी से कत्ल।
बेहद सुंदर।
निर्जन में पायल की छम पर
शायद वीरानों के दिल में
हिरण कुलीचे भरता होगा
बहुत सुन्दर ख्याल है
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