दिल के नासूर सारे, हरे हो गये..
याद की टीस से, आँख फिर नम हुई
हम जिया के जले, अधमरे हो गये।
तुमको जीते रहे, तुमको पीते रहे
तुम मेरी ज़िन्दगी हो शराबी नदी
मोड़ वो है कि अब रेत ही रेत है
और दरिया के सारे निशाँ खो गये।
एक जहर, दोपहर, पी के हम सो गये
सोच कर तेरे बिन क्या से क्या हो गये
सांस चलती रही, शान से मर गये
हम चले तो गये, तुम चले जो गये।
अपनी ही लाश ढोते हैं तो क्या करें
तनहा रातों में रोते हैं तो क्या करें
चैन से, नींद से, दिल से मजबूर हैं
मन की ही मान कर मनचले हो गये।
मीत कहते हो पर कितने रीते हो तुम
हार कह कर हमेशा ही जीते हो तुम
हम तो कहते हैं "राजीव" वो बात भी
जिससे हम अनकही दास्ताँ हो गये।
*** राजीव रंजन प्रसाद
10.08.2006
9 comments:
हम तो कहते हैं "राजीव" वो बात भी
जिससे हम अनकही दास्ताँ हो गये।
बहुत भावपूर्ण रचना है आप की राजीव जी...विरह का सजीव चित्रण. बहुत सुंदर शब्द और भाव.
नीरज
बहुत ही सुंदर भावपूर्ण रचना...
तुमको जीते रहे, तुमको पीते रहे
तुम मेरी ज़िन्दगी हो शराबी नदी
मोड़ वो है कि अब रेत ही रेत है
और दरिया के सारे निशाँ खो गये।
एक जहर, दोपहर, पी के हम सो गये
सोच कर तेरे बिन क्या से क्या हो गये
सांस चलती रही, शान से मर गये
हम चले तो गये, तुम चले जो गये।
judai bhi teri dil ko laga li humne,bahut hi sundar sundar chitran kiya hai judai mein gujarte lamhon ka,awesome,bahut badhai.
मीत कहते हो पर कितने रीते हो तुम
हार कह कर हमेशा ही जीते हो तुम
हम तो कहते हैं "राजीव" वो बात भी
जिससे हम अनकही दास्ताँ हो गये।
गज़ब है भाई. यकीन करें, बहुत देर से इस रचना को पढ़ रहा हूँ .. बार बार .... और कुछ कहने को नहीं है ....
जुदाई का दर्द बाखूबी बयां करती है आपकी ये रचना.
बधाई.
उम्दा रचना
राजीव जी, मैनें आपके ब्लॉग का लिंक अपने ब्लॉग में जोड़ा है। यदि आपको आपत्ति हो तो क्रपया मुझे सूचित कर दें।
क्या बात है!! बहुत उम्दा लिख रहे हैं, बस, यही माहौल बनाये रखें. मैं तो आपको शुभकामना देने को हूँ ही..आप तो जानते हैं. :)
बहुत सुंदर !
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