Monday, June 23, 2008

मुझे मौत ही की सज़ा मिले..

मुझे मौत ही की सजा मिले।

मुझे गम के फंदे में झोल कर,
तुझे मुस्कुराने की बात हो
मुझको कबूल फिर रात है।

मुझे उफ न करने का दम्भ है
मुझे नश्तरों से गिला नहीं

मुझे रात भर तेरी कैद थी
तू जो खिल गया
मुझे मिल गया
वही रास्ता जहाँ जन्नतें
वही ठौर जिसको कि मन्नतें
कभी सजदा करके न पा सकी.

*** राजीव रंजन प्रसाद
16.04.2007

4 comments:

mehek said...

मुझे रात भर तेरी कैद थी
तू जो खिल गया
मुझे मिल गया
वही रास्ता जहाँ जन्नतें
वही ठौर जिसको कि मन्नतें
कभी सजदा करके न पा सकी.

ehsaas bahut sundar,bahut badhai

Anonymous said...

sundar rachana. badhai ho.

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा अहसास हैं.

अमिताभ मीत said...

बहुत सुंदर है भाई. वाह ! क्या बात है.