Friday, June 06, 2008

तुम्हारे आँसू बेमानी थे..

तुम्हारे अंतरद्वन्द्व नें प्याज काटी हो जैसे
तुम्हारे आँसू बेमानी थे कितने
बहुत थे लकिन कि मेरे जज़बातों को नाँव बना दो
और तैर जाने दो तुम्हारे भीतर
हर बार डूब गया हूँ मैं
अगर वो आँसू रहे होते
जल न गया होता अब तलक..

*** राजीव रंजन प्रसाद
१९.११.१९९५

6 comments:

रंजू भाटिया said...

हर बार डूब गया हूँ मैं
अगर वो आँसू रहे होते
जल न गया होता अब तलक..

अच्छी लिखी है राजीव जी

कुश said...

आप की ये अदा भी खूब है कम शब्दो में गहरी बात कहना..

बालकिशन said...

सुंदर और बेहतरीन प्रस्तुति.
बहुत अच्छा लिखा आपने.
बधाई.

अमिताभ मीत said...

क्या बात है भाई. बहुत सुंदर.

Udan Tashtari said...

बढ़िया.

mehek said...

wah bahut khub