Sunday, June 01, 2008

पुनर्जन्म का यकीन हो चला है..

तुम्हारे इन्तज़ार में एक उम्र गुज़ार दी मैनें
मुझे अब पुनर्जन्म का यकीन हो चला है
क्योंकि न मैं जीता रहा
न जी सके हो तुम मुझसे दूर..

एक उम्र खामोशियों की जो गुजरती है अब
कभी तो हमें जिला जायेगी
तुम्हारे क़रीब ही मेरी रूह को साँस आयेगी..

***राजीव रंजन प्रसाद
२०.११.१९९६

9 comments:

Rajesh Roshan said...

तुम्हारे इन्तज़ार में एक उम्र गुज़ार दी मैनें मुझे अब पुनर्जन्म का यकीन हो चला हैक्योंकि न मैं जीता रहान जी सके हो तुम मुझसे दूर..

राजीव जी इन पंक्तियों में चेतना है

Anonymous said...

बहुत खूब...

Alpana Verma said...

पुनर्जन्म का यकीन हो चला हैक्योंकि न मैं जीता रहा ,na जी सके हो तुम मुझसे दूर..


bahut kuchh kah jaati hain thode shbdon mein ye panktiyan!

अमिताभ मीत said...

क्योंकि न मैं जीता रहा
न जी सके हो तुम मुझसे दूर..
क्या बात है .... जो कहना रह गया.... वो गज़ब ढा गया. वाह !

Rajesh R. Singh said...

काफी अच्छा लिखा है पसंद आया.........

Udan Tashtari said...

मुझे अब पुनर्जन्म का यकीन हो चला है
क्योंकि न मैं जीता रहा
न जी सके हो तुम मुझसे दूर..

--बहुत खूब, राजीव जी. बड़ी गहरी बात कह गये.

बालकिशन said...

चंद पंक्तियों की इस कविता मे अद्भुत अर्थ भर दिए आपने.
भावपूर्ण रचना.
बधाई.

Anonymous said...

atisundar,punarjanam par vishas ho gaya hame bhi,ruh ka rishta bada pakka hota hai,its awesome

कुश said...

कम शब्दो में गहरी बात.. बहुत अच्छे