Monday, June 25, 2007

कुछ टूट गया है...



सागर न समाओगे कि कुछ टूट गया है
जीता ही जलाओगे कि कुछ टूट गया है..

हँस हँस के किसी कोर के अश्कों को रौंद कर
क्या क्या न बताओगे कि कुछ टूट गया है..

अपनी तलाश में कि जो तुम चाँद तक गये
क्या लौट भी पाओगे कि कुछ टूट गया है..

चेहरे पे नया चेहरा लिये मिल जो गया वो
क्या हाँथ मिलाओगे कि कुछ टूट गया है..

हर ओर पीठ पीठ है "राजीव" भीड में
क्या साथ निभाओगे कि कुछ टूट गया है..

*** राजीव रंजन प्रसाद
११.०२.२००७

9 comments:

Udan Tashtari said...

चेहरे पे नया चेहरा लिये मिल जो गया वो
क्या हाँथ मिलाओगे कि कुछ टूट गया है..


--बहुत खूब!!

तस्वीर कहीं देखी लग रही है. किसी बड़े फोटोग्राफर ने ली है लगता है. :)

Satyendra Prasad Srivastava said...

हर ओर पीठ पीठ है "राजीव" भीड में
क्या साथ निभाओगे कि कुछ टूट गया है..

बहुत अच्छे

राकेश खंडेलवाल said...

खूबसूरत ख्याल है

Vikash said...

सुन्दर है।
जो टूटा फूटा है उसे संभाल लीजिये। :)

36solutions said...

बहूत खूब राजीव जी

Gaurav Shukla said...

"सागर न समाओगे कि कुछ टूट गया है
जीता ही जलाओगे कि कुछ टूट गया है.."

बहुत बढिया लिखा है राजीव जी

"हर ओर पीठ पीठ है "राजीव" भीड में
क्या साथ निभाओगे कि कुछ टूट गया है.."

सुस्पष्ट , प्रभावी बिम्ब
सुन्दर

सस्नेह
गौरव शुक्ल

सुनीता शानू said...

सुन्दर अभिव्यक्ति है राजीव जी...

अपनी तलाश में कि जो तुम चाँद तक गये
क्या लौट भी पाओगे कि कुछ टूट गया है..
बहुत गहरे भाव है...
हर ओर पीठ पीठ है "राजीव" भीड में
क्या साथ निभाओगे कि कुछ टूट गया है..
बहुत सुंदर!

शानू

Anupama said...

सागर न समाओगे कि कुछ टूट गया है
जीता ही जलाओगे कि कुछ टूट गया है..

हँस हँस के किसी कोर के अश्कों को रौंद कर
क्या क्या न बताओगे कि कुछ टूट गया है..

अपनी तलाश में कि जो तुम चाँद तक गये
क्या लौट भी पाओगे कि कुछ टूट गया है..

चेहरे पे नया चेहरा लिये मिल जो गया वो
क्या हाँथ मिलाओगे कि कुछ टूट गया है..

हर ओर पीठ पीठ है "राजीव" भीड में
क्या साथ निभाओगे कि कुछ टूट गया है..

yah sab lines aachi lagi :D

विश्व दीपक said...

अनुपमा जी की तरह मैं कोई गुस्ताखी न करूँगा, अपनी पसंदीदा पंक्तियाँ चुनने की(अनुपमा जी से माफी मांगते हुए) ।मुझे तो सारी हीं रचना बहुत पसंद आई है। दिल के अंदर हरेक शब्द उतर गए हैं।
बधाई स्वीकारें।