
पूरी रात पिघलता रहा हूँ
समूचा दिन जम कर थमा रहा
एक हलकी सी चिन्गारी
एक ठंडी बर्फ सा अहसास
दोनों ही की कशमकश जीनें नहीं देती..
बोलो कि अपना पागल कलेजा
किस पिंजरे में कैद करूंगा
बोलो कि आवारा अंधेरा
जो मुझे छेड जाता है
किससे करूंगा शिकायत
एक तमन्ना ही नें मुझे
जाने कितने सांचों में ढाला निकाला
मेरे प्यार मैं मोम नहीं हूं
लेकिन हो जाता हूँ...
*** राजीव रंजन प्रसाद
१९.०४.१९९७
6 comments:
एक हलकी सी चिन्गारी
एक ठंडी बर्फ सा अहसास
दोनों ही की कशमकश जीनें नहीं देती
अच्छा ख्याल है.
मेरे प्यार मैं मोम नहीं हूं
लेकिन हो जाता हूँ...
kyaa kahoon.. in panktiyon mein aap sab kah gaye.. waise poori kawitaa hi umdaa hai..
मेरे प्यार मैं मोम नहीं हूं
लेकिन हो जाता हूँ...
वाह लचक गयी हो कोई ड़ाल जैसे ..... समर्पण का यह भाव बहुत सुन्दर है
बहुत ही खूबसूरती से दिल के भावों को शब्दों में ढ़ाला है, बधाई!!!
एक हलकी सी चिन्गारी
एक ठंडी बर्फ सा अहसास
---यह कशमकश कवि हृदय ही अहसास सकता है.
उत्सर्ग की कामना और फ़िर पाने की सुखकामना!!
बढ़िया रचना!!
"एक हलकी सी चिन्गारी
एक ठंडी बर्फ सा अहसास"
"मेरे प्यार मैं मोम नहीं हूं
लेकिन हो जाता हूँ..."
आपकी कविताओं के प्रभावी और बहुत गहरे भाव भीतर तक कुरेद देते हैं
बहुत सुन्दर
सस्नेह
गौरव शुक्ल
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