खामोश रहने की बात
कुछ ऐसे हो
कि तुम्हारे होठों पर
अपनी उंगली रख कर
अपनी आखों को,
तुम्हारी पलकों पर
ठहर जाने दूं..
और खामोशी यूं टूटे
कि मेरी उंगली
कस कर दांतों में दाब लो तुम
आँखें जुगनू कर लो
मैं उफ भी न करूं
मुस्कुरा दूं बस
बहुत हौले..
*** राजीव रंजन प्रसाद
९.११.१९९५
3 comments:
क्या नाजुक ख्याल है.
kya baat hai :-)
मेरी पहले वाली टिप्पनी कहां गयी...?
सुन्दर नाजुक ख्याल है
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