Thursday, June 07, 2007

मुस्कुरा दूँ बस..


खामोश रहने की बात
कुछ ऐसे हो
कि तुम्हारे होठों पर
अपनी उंगली रख कर
अपनी आखों को,
तुम्हारी पलकों पर
ठहर जाने दूं..


और खामोशी यूं टूटे
कि मेरी उंगली
कस कर दांतों में दाब लो तुम
आँखें जुगनू कर लो
मैं उफ भी न करूं
मुस्कुरा दूं बस
बहुत हौले..


*** राजीव रंजन प्रसाद
९.११.१९९५

3 comments:

राकेश खंडेलवाल said...

क्या नाजुक ख्याल है.

Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी said...

kya baat hai :-)

Mohinder56 said...

मेरी पहले वाली टिप्पनी कहां गयी...?

सुन्दर नाजुक ख्याल है