कुछ दिनों का अवकाश। अभी कुछ दिन पटना मे हूँ। एक छोटा सा शोध विषय ले कर आया हूँ - एक समय के समृद्ध शासकों का दौर और तत्कालीन बस्तर से उनके राजनीतिक सम्बन्ध पर हो सकता है कोई सूत्र, कोई संदर्भ या कोई एसी शिला ही मिल जाये जो मुझे देख कर कहे कि आओ मैं देती हूँ तुम्हारे सवालों के जवाब!! बस्तर पर बहुत काम हुआ है और मैं शायद ही उन संदर्भों में कुछ नया जोड सकूं लेकिन पंक्तियों के बीच पढते हुए कई सवाल कुलबुलाते रहे जिन्हें मैने अपनी डायरी में उतार लिया है। उनके जवाब तो तलाशूंगा ही और उसके लिये पाटलीपुत्र के पुरावशेषों से मिलने का कार्यक्रम है कल से - राजगीर, नालंदा, वैशाली और बोध गया तो निश्चित ही। पटना में हृषिकेश जी से भी मिलूंगा इसी दौरान..।
इस पोस्ट के साथ लगी हुई तस्वीर भागलपुर के निकट अवस्थित प्राचीन विश्वविद्यालय विक्रमशिला की है। यहाँ तक पहुँचने के मार्ग नें मायूस लिया था तथापि इस धरोहर के संरक्षण के प्रयासों से आंशिक संतोष मिला। दुर्भाग्य वश स्थानीय लोगों में इस धरोहर के प्रति बहुत ललक देखने को नहीं मिली। यहाँ अवस्थित मुख्य भवन, छात्रावास के अवशेष, कक्षायें आदि आदि के भग्नावशेषों को देख कर गर्व किया जा सकता है कि यह हमारी भारतभूमि की थाती रही है। जहाँ कभी विक्रमशिला का पुस्तकालय था वह स्थान मनोहारी है तथा आज के विश्वविद्यालयों को अभी भी शिक्षा के मायने सिखाने में सक्षम है। आम का एक वृहत बागीचा जहाँ स्थान स्थान पर अध्येताओं को बैठने, मनन-चिंतन और विमर्श करने के स्थल साथ ही संदर्भ एकत्रित रखने के भवन के अवशेष यह बताते हैं कि हमने अपनी अध्ययन परम्परा को खो कर शायद अपना ही सर्वाधिक नुकसान किया है और महज किताबी कीट हो गये हैं। हमने अपनी जडों से अपने पाँव खींच लिये हैं इस लिये ही अपनी धरोह्जरों को खंडहर कहते हैं और उनकी उपेक्षा पर ग्लानि भी महसूस नहीं करते।
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यात्रा समय जून 18 - 2जुलाई के मध्य।
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