Tuesday, July 31, 2012

हृषिकेश सुलभ जी नें दुर्लभ तस्वीरों का खजाना हममें बाँट दिया..



हृषिकेश सुलभ जी से मुलाकात और यादें बस्तर की...।
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हृषिकेश जी को यत्र तत्र पढने का मौका मिला है तथा नाटक में रुचि हेने के कारण उनकी इस क्षेत्र में सक्रियता के समाचारों से भी परिचित होता रहा हूँ। साहित्य शिल्पी के लिये मैने एक आलेख भी हृषिकेष जी को शुभकामनायें प्रदान करने के लिये लिखा था जब 2010 में उन्हें इन्दु शर्मा कथा सम्मान प्राप्त हुआ था। इन सब के बाद भी मुझे जानकारी नहीं थी कि हृषिकेश जी का सम्बन्ध बस्तर से भी है। प्रफुल्ल चन्द्र भंजदेव पर लिखे मेरे आलेख पर जब उन्होंने टिप्पणी की तथा बस्तर से जुडे अपने संस्मरण बाँटे तब उनसे मिलने की प्रबल इच्छा और बलवति हो गयी। पटना आकाशवाणी केन्द्र में वे कार्यरत हैं और वहीं उनसे मुलाकात भी हुई। हृषिकेश जी जितना बडा व्यक्तित्व हैं उतने ही सरल भी हैं, उनसे मिल कर लगा ही नहीं कि यह हमारी पहली मुलाकात है। 

हृषिकेश जी 1980 के दौर में बस्तर में रहे हैं। यह दौर रेडियो का ही था। इस दौर में कार्यक्रम बालवाडी में मेरी कवितायें भी आकाशवाणी जगदलपुर से प्रसारित होती थीं। जगदलपुर में रंगकर्म की पहचान कहे जाने वाले एम ए रहीम मेरे प्रति बहुत स्नेह रखते थे और बालवाणी से युववाणी तक के मेरे सफर में उनके साथ और मार्गदर्शन की अनेको मधुर स्मृतियाँ मेरे पास हैं, जो हृषिकेश जी के साथ बैठ कर जैसे ताजा हो गयीं। हृषिकेश जी बताते हैं कि कैसे जगदलपुर में अपनी नौकरी ज्वाईन करने के लिये वे उत्साह से निकलते हैं लेकिन जब केशकाल की सुन्दर किंतु दुर्गम घाटियों को पार करने लगते हैं तो बस्तर की एक तस्वीर उनके दिमाग में बनने लगती है। जगदलपुर उनके विचार में एक अति पिछडा गाँव प्रतीत होता है और वे नगर में उतरते ही सबसे पहले सामने दिखने वाले राजस्थान लॉज में कमरा ले लेते हैं। तभी उनकी नजर सामने एसटीडी पर पडती है और तब वे अहसास करते हैं कि जिस शहर में आकाशवाणी है वहाँ बुनियादी सुविधायें न होने का प्रश्न ही नहीं। धीरे धीरे जगदलपुर ही नहीं बस्तर नें भी उन्हें अपना बना लिया, इतना अपना कि हृषिकेश जी आज भी जब बस्तर की बात करते हैं तो उनकी आँखों में वहाँ की स्मृतियों में डूब जाने वाला रंग स्पष्ट नजर आता है। हृषिकेश जी बस्तर के गाँव गाँव घूमे तथा लोक जीवन और लोकगीतों को रिकॉर्ड किया है। उन्होंने बताया कि कई दुर्लभ रिकॉर्डिंग्स अभी भी उनके पास हैं तथा उस समय की खीची हुई तस्वीरें भी। हृषिकेश जी उन सौभाग्यशाली बस्तर प्रेमियों में से हैं जिन्हें निश्चिंतता से अबूझमाड घूमने-देखने और अध्ययन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है।

उनके बताये दो संस्मरण मर्मस्पर्शी हैं। पहला लाला जगदलपुरी जी की सादगी से सम्बन्धित है। उन दिनों मध्यप्रदेश (तब छत्तीसगढ राज्य नहीं बना था) के मुख्यमंत्री थे अर्जुन सिंह। अपने तय कार्यक्रम को अचानक बदलते हुए मुख्यमंत्री नें लाला जगदलपुरी से मिलना तय किया और गाडियों का काफिला डोकरीघाट पारा के लिये मुड गया। लाला जी घर में टीन के डब्बे से लाई निकाल कर खा रहे थे और उन्होंने उसी सादगी से मुख्यमंत्री को भी लाई खिलाई। यह प्रसंग असाधारण है तथा दो व्यक्तित्वों के विषय में बहुत कुछ कहता है। दूसरा प्रसंग है ब्रम्हदेव शर्मा से संबंधित। जिन दिनों ब्रम्हदेव शर्मा कलेक्टर थे उन दिनों उनके फरमान से शोषित मानी गयी आदिवासी युवतियों की उनके शोषक एनएमडीसी के कर्मचारी युवको से शादी करवा दी गयी। यह किसी समस्या का समाधान कैसे हो सकता था? शायद हमारे व्यूरोक्रेट्स स्वयं को सर्वज्ञाता समझने की गफलत में रहते हैं और उसी नजरिये से आदिवासी समाज और उनकी समस्याओं को समझते व समाधान सुझाते हैं। हृषिकेश जी बताते हैं कि जब तक ब्रम्हदेव कलेक्टर थे ये शादियाँ तभी तक टिकीं उसके बाद बहुतायत आदिवासी युवतियाँ परित्यक्तायें हो गयीं। परिणाम इतने घातक हुए कि कुछ युवतियाँ गंगामुण्डा में वेश्यावृत्ति करने के लिये बाध्य हो गयीं थीं। 

हृषिकेश जी नें अपनी स्मृतियों से बहुत पुराने दिन ताजा किये। उन्होंने गायक लोककलाकार याद किये, गाँवों में बिताये दिन याद किये, बस्तर में बनायी जाती तरह तरह की शराब और उसके तरीके याद किये, वहाँ की मस्ती, सादगी, अपनत्व.....बहुत कुछ हमारी घंटे भर की मिलाकार में बाहर आता रहा। उन्होंने आज के हालात के लिये गहरा दु:ख जाहिर किया और बस्तर का जो दुष्प्रचार किया जा रहा है एवं जिस तरह की तस्वीर देश दुनिया के सामने रखी जा रही है उसके प्रति असहमति भी जतायी। हृषिकेश जी नें बस्तर में बिताये अपने दिनों के दौरान 1910 के एक क्रांतिकारी लाल कालेन्द्र सिंह पर केन्द्रित एक नाटक भी लिखा था जिसकी प्रति अब उनके पास नहीं है। मृच्छकटिकम् की पुनर्रचना “माटीगाड़ी” और फणीश्वरनाथ रेणु के उपन्यास का नाट्यांतर मैला आँचल लिखने वाले रचनाकार से बस्तर की कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं के नाट्यरूपांतरण का अनुरोध तो कर ही सकता हूँ। हृषिकेश जी ने मुझे लाल कालेन्द्र पर आलेख पूरा करने के लिये प्रोत्साहित किया है और जल्दी ही मैं यह कार्य पूरा भी करूंगा। हृषिकेश जी एक और अनुरोध कि जो तस्वीरें आपके पास हैं तथा वे बस्तरिया महकते जिन्दा गीत भी जिनकी रिकॉर्डिंग आपके पास हैं उन्हें कृपया हम सब के साथ भी बाँट दीजिये। आपकी निगाह से देखें लोग - तीन दशक पहले का जिन्दा और सांस लेता बस्तर। 
[यह आलेख पटना से हृषिकेश जी से मिलाकात के पश्चात] 
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हृषिकेश जी नें अपना वायदा निभाते हुए 1980-81 के दौर के बस्तर की कुछ जीवंत तस्वीरें साझा की हैं। ये तस्वीरें इतिहास का हिस्सा तो बन ही गयी हैं साथ ही यह समझने में भी सहायक हैं कि लाल-हिंसा के वर्तमान दौर नें इस अंचल से क्या क्या छीन लिया है।  

चित्र-1 - बस्तर की एक आदिवासी युवती।


चित्र - 2 काकसाड़ नाच की तैयारी


चित्र -3 बस्तरिया युगल [चेलक और मोटियारी]


चित्र-4 बालों में पड़िया 


चित्र-5 हाट में पिया को निहारती आँखें


चित्र-6 सोड़ी औरत


चित्र-7 सियाड़ी की लता से रस्सी बनाते हाँथ


चित्र-8 बस्तरिया युवक


चित्र - 9 दोनी और पत्तल बनाती युवती


चित्र-10 हाट जाने की तैयारी


चित्र-11 अचरज भरी आँखें


चित्र-12 जंगल में साथ साथ जीवन 


चित्र-13 तीरथगढ जलप्रपात 


चित्र-14 चित्रकोट जलप्रपात 


चित्र-15 कोटुम्सर की गुफा


चित्र-16 मार्डिन नदी का पथरीला पाट 


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4 comments:

sharad Chandra Gaur said...

Vakai bastar ki etihasik jhanki he

girish pankaj said...

kamaal kar diyaa sulabh ji ne. unke kaam ko sadhuwaad...

अभिषेक सागर said...

बस्तर तो बस्तर है....बहुत ही खुबसूरत...

Rahul Singh said...

सचमुच खजाना.