सुबह सुबह रिम झिम बरसती बरखा नें एक बार कार्यक्रम पर पुनर्विचार करने की स्थिति ला दी थी। साथी अनुज जी के साथ उनकी बाईक पर ही निकल पडा। पटना शहर से लगभग सौ किलोमीटर से कुछ अधिक की दूरी पर अवस्थित हैं नालंदा के खण्डहर। पटना वुमेंस कॉलिज की बिल्डिंग से कुछ आगे निकलते दुर्घटना हो गयी। एक बाईकसवार नें गलत साईड से ओवरटेक किया और टकराने की स्थिति से बचने की कोशिश में तथा बारिश के कारण गीली सडक होने के कारण अनुज जी का संतुलन बिगडा और हम दोनो मय-सामान के सड़क पर। हल्की चोटे हैं थोडा कमर में दर्द भी है लेकिन कपडे झाड कर हम आगे बढ गये।
बिहार शरीफ पहुँने से लगभग पाँच-छ: किलोमीटर पहले ही चाय पीने के लिये छोटी सी दूकान पर रुका जिसे एक वयोवृद्ध चला रहे थे। चाय पीते पीते गंगा नदी और उसकी पवित्रता से बात शुरु हुई। थोडी ही देर में एक अन्य बुजुर्ग श्रोता भी इस चर्चा में सम्मिलित हो गये तथा अब बात राजगीर के उस इतिहास की होने लगी जिसमें से अधिकांश को आप जनश्रुतियाँ कह् कर वर्गीकृत करेंगे। एक बार लाला जगदलपुरी जी नें किसी चर्चा के दौरान कहा था कि जनश्रुतियों और मौखिक इतिहास को अनदेखा मत करना अन्यथा सत्य तक पहुँचने की किसी महत्वपूर्ण कडी को छोड दोगे। आज भी यही बात सत्य सिद्ध हुई क्योंकि गंगा से चर्चा जरासंध तक पहुँची थी चूंकि राजगीर में उनका अखाडा और खजाना होने जैसी मान्यतायें भी विद्यमान हैं। फिर पुरानी जमीनदारी व्यवस्था पर बात चल निकली कि यह इतना उर्वरा क्षेत्र है कि एक समय चार जमीन्दारों में यहाँ से वसूल लगान का पैसा बटता था। एक एक और दो दो पैसों के चलन की अर्थव्यवस्था के युग में भी यहाँ से लाख रुपये से अधिक की आमद होती थी। बहुत सी बाते हुईं और इस बीच चर्चा को विराम न लगे इस लिये मैं तीन कप चाय भी पी गया था। यह पीढी अपने अनुभवों से भरी हुई है, वे मुक्त हृदय से हमें और हमारी संततियों को अपना अब तक का अर्जित दे देना चाहते हैं। आवश्यकता बस उन्हें अपनी ही धुन में बोलने देने भर की है फिर अगर आपमें क्षमता है तो बटोर लीजिये यह अमूल्य निधि। जब “आमचो बस्तर” पर काम कर रहा था तब बहुत से सवाल एसे थे जिनके उत्तर पाने की जिज्ञासा में जिस भी चेहरे की ओर देखता अधिकांश डरकर मुँह फेर लेते थे। मुझे वहाँ भी बुजुर्ग आदिवासी पीढी ने ही सबसे अधिक सहयोग दिया था। उनकी बातों से ही मेरे उपन्यास की बहुत सी लघुकथायें बन पडी हैं।.....।
जब चलने लगा तो बुजुर्ग दूकानदार नें पैसे लेने से इनकार कर दिया। बहुत मुश्किल से उनको पैसे थमाये तो कुछ क्षण वे मेरा हाँथ थाम कर खडे ही रहे। मैंने उनके नाम नहीं पूछे और वे मेरा नाम नहीं जानते; मैं यह भी जानता हूँ कि दुबारा हमारी मुलाकात शायद ही हो लेकिन आत्मीयता के उस स्पन्दन को कभी नहीं भूल पाउंगा। बहुत कुछ पाया मैंने इन पलों में।
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