धूप भरी ज़िन्दगी में |
निर्झर में पैर डाले |
गुनगुनाते हुए कुछ ही पल |
एसे नहीं हैं क्या |
जैसे भूले हुए लम्हों में |
बीती हुई बातों की चीरफाड |
और छोटी छोटी बातों पर घंटों की उलझन |
जैसे आपस में गुथे हुए हम... |
फिर फिर याद आओगे आप हमें |
स्मृतियों में महकेंगे ये पल |
और डूब डूब जायेंगे हम |
हल्के से मुस्कायेंगे |
जैसे कि डूबी शाम में |
दूर कहीं बज उठी "जगजीत" की गज़ल.. |
*** राजीव रंजन प्रसाद |
२७.११.१९९५ |
9 comments:
सुन्दर लगी आपकी यह रचना
फिर फिर याद आओगे आप हमें
स्मृतियों में महकेंगे ये पल
और डूब डूब जायेंगे हम
हल्के से मुस्कायेंगे
जैसे कि डूबी शाम में
दूर कहीं बज उठी "जगजीत" की गज़ल..
bahut sundar
very very nice poem.
हम तो आपकी रचना के दीवाने हो गये!
सुन्दर रचना
वाह! बहुत सुन्दर.बहुत उम्दा,बधाई.
फिर फिर याद आओगे आप हमें
स्मृतियों में महकेंगे ये पल
और डूब डूब जायेंगे हम
हल्के से मुस्कायेंगे
जैसे कि डूबी शाम में
दूर कहीं बज उठी "जगजीत" की गज़ल..
waah...bahut khoob.
वाह बहुत खूब तस्वीर भी इन शब्दों की तरह ही...
बहुत मजेदार.... बहुत सुन्दर ..........
Post a Comment