Friday, August 08, 2008

बडा स्कूल.


स्कूल बहुत बडा है
डिजाईनर दीवारें हैं
हर कमरे में ए.सी है
एयरकंडीश्नर बसें आपके बच्चों को घर से उठायेंगी
यंग मिस्ट्रेस नयी टेकनीक से उन्हे पढायेंगी
सूरज की तेज गर्मी से दूर
नश्तर सी ठंडी हवाओं से दूर
मिट्टी की सोंधी खुश्बू से दूर
जमीन से उपर उठ चुके माहौल में बच्चे आपके
केवल आकाश का सपना बुनेंगे
नाम स्कूल का एसा है साहब
मोटी तनख्वाहें देने वाले
स्वतः ही आपके बच्चों को चुनेंगे
बच्चे गीली मिट्टी होते हैं
हम उन्हें कुन्दन बनाते हैं
आदमी नहीं रहने देते..

मोटी जेबें हों तो आईये एडमिशन जारी है
पैसे न भी हों तो आईये, अगर प्यारा है बच्चा आपको
और अपनी आधी कमाई फीस में होम कर
आधे पेट सोने का माद्दा है आपमें
जमाने की होड में चलने का सपना है
और बिक सकते हैं आप,तो आईये
बेच सकते हैं किडनी अपनी, मोस्ट वेलकम
जमीर बेच सकते हैं...सुस्वागतम|

कालाबाजारियों से ले कर मोटे व्यापारियों तक
नेताओं से ले कर बडे अधिकारियों तक
सबके बच्चे पढते हैं इस स्कूल में
और उनके बच्चे भी जो अपने खून निचोड कर
अपने बच्चों की कलम में स्याही भरते हैं..

हम कोई मिडिलक्लास पब्लिक स्कूल की तरह नहीं
कि बच्चों को बेंच पर खडा रखें
मुर्गा बनानें जैसे आऊट ऑफ फैशन पनिशमेंट
हमारे यहाँ नहीं होते..
हम बच्चों में एसे जज्बे, एसे बीज नहीं बोते
कि वो "देश्" "समाज" "इंसानियत" जैसे आऊट ऑफ सिलेबस थॉट्स रखे..

यह बडा स्कूल है साहब..
और आप पूछते हैं कि
ए से "एप्पल", "अ" से "अनार" से अलग
एसा क्या पढायेंगे कि मेरे बच्चे अगर कहीं बनेंगे,
तो यहीं बन पायेंगे?
सो सुनिये..हर बिजनेस की अपनी गारंटी है
हम सांचा तैयार रखते हैं
बच्चों को ढालते हैं
फ्यूचर के लिये तैयार निकालते हैं
हमारे प्राडक्ट एम.बी.ए करते हैं
डाक्टर ईन्जीनियर सब बन सकते हैं
कुछ न बने तो एम.एम.एस बनाते हैं..

हम बुनियाद रख रहे हैं
नस्ल बदल देंगे
जितनी मोटी फीस
वैसी ही अकल देंगे
कि आपके बच्चे राह न भटक पायें
पैसे से खेलें, पैसे को ओढें, पैसे बिछायें
आपका इंवेस्टमेंट वेस्ट न जानें दें
पैसा पहचानें, पैसा उगायें
सीट लिमिटेड है, डोनेशन लाईये
बच्चे का भविष्य बनाईये
होम कर दीजिये वर्तमान अपना
कि शक्ल से ही मिडिल क्लास लगते हैं आप..

और कल आप देखेंगे आपका लाडला
पहचाने न पहचाने आपको,
मिट्टी को, सूरज को, पंछी को, खुश्बू को
पहचाने न पहचाने देश, परिवेश
इतना तो जानेगा
कौन सा रिश्ता मुनाफे का है
हो सकता है आपसे पीठ कर ले
कि बरगद के पेड में फल कहाँ लगते हैं
घाटे की शिक्षा वह यहाँ नहीं पायेगा
यह बडा स्कूल है...

*** राजीव रंजन प्रसाद

१५.०१.२००७

7 comments:

L.Goswami said...

सब बन सकतें है ये बच्चे नही बन सकते तो अच्छे इन्सान .जय हो पूंजीवाद की !!

बालकिशन said...

जो लिख दिया है भाई साहब इस कविता के माध्यम से जवाब नहीं.
बहुत ही सुंदर और सफल प्रयोग.
कारारी चोट की है इस रुग्न व्यवस्था के ऊपर.
आप बधाई के पात्र है.

शोभा said...

कौन सा रिश्ता मुनाफे का है
हो सकता है आपसे पीठ कर ले
कि बरगद के पेड में फल कहाँ लगते हैं
घाटे की शिक्षा वह यहाँ नहीं पायेगा
यह बडा स्कूल है...
बहुत सही और सुन्दर लिखा है। बधाई स्वीकारें।

Udan Tashtari said...

आज के यथार्थ का बखूबी चित्रण किया है. बधाई.

नीरज गोस्वामी said...

राजीव भाई
बहुत शशक्त रचना है ये आपकी...व्यंग की चाशनी में लिपटी कुनीन की गोली है...आज का बदसूरत यथार्थ है...
नीरज

vipinkizindagi said...

सुन्दर.........

Dr. Amar Jyoti said...

पूंजीवाद जीवन की पवित्रतम वस्तुओं को भी बिकाऊ माल में ढाल देता है। शिक्षा के क्षेत्र मे इसी प्रक्रिया का मार्मिक चित्रण करती है यह कविता। बहुत ख़ूब!