जैसे गिलहरी कुतरती है दाने
मासूमियत से, बहुत हौले
तुमने सिर्फ छिलकों सा कर दिया है मन..
कितनी भोली तुम्हारी आँखों का
मुझको जो चीर गया था सावन
मैनें फिर डूब कर के तुममें ही
बूँद प्यारी सी तेरी पलकों से
अपनी उंगली पे थाम ही ली थी
जैसे सीने का अपने ही पत्थर
मैनें कंधे पे रख लिया अपनें
जैसे कि झुक गयी कमर मेरी
जैसे कि उम्र बीत जाती हो..
फिर वो मोती निगाह से छू कर
पी गया चूम कर वही सागर
तुमने सूनी सी आँख से देखा
जैसे कुछ भी न शेष हो तुम पर
फिर हवा बोलती रही केवल
और मछली की आँख आखों में
ले के बुत ही हो गया था मै
फिर न तुम्हे याद रहा कैसी घटा
फिर न मुझे याद रही वो टीसें
एक हल्का सा जो गुलाब खिला
तेरे भीगे हुए कपोलों पर
मेरे मन में उडे कबूतर फिर
फिर भी मैं क्यों बिखर गया हूं फिर
फिर भी मेरा वज़ूद क्यों खोया
ए मेरे प्यार, मेरी नज़्म, मेरे दिल
तेरी आँखों के अश्क खंजर हैं
मुझको क्यू कर सहे नहीं जाते
दोनो हाथों में ले के हौले से
जैसे कुतरा किये गिलहरी हो
तेरे मासूम ज़ख्म तो हैं पर
मेरे अहसास सह नहीं पाते..
*** राजीव रंजन प्रसाद
१४.११.१९९५
7 comments:
फिरफिर भी मेरा वज़ूद क्यों खोयाए मेरे प्यार,
मेरी नज़्म, मेरे दिलतेरी आँखों के अश्क खंजर हैं
मुझको क्यू कर सहे नहीं जातेदोनो हाथों में ले के हौले सेजैसे कुतरा किये गिलहरी हो
तेरे मासूम ज़ख्म तो हैं परमेरे अहसास सह नहीं पाते.
बहुत दर्द है इन पंक्तियों में...जैसे की सारा दर्द दिल का सिमट गया एक रचना में...
सुनीता(शानू)
वाह राजीव भैया बेहद सुन्दर रचना है ... आपकी अन्य सभी रचनाओं की ही तरह .... इसे भी सुनना चाहूंगा आपकी ज़ुबानी
दोनो हाथों में ले के हौले से
जैसे कुतरा किये गिलहरी हो
तेरे मासूम ज़ख्म तो हैं पर
मेरे अहसास सह नहीं पाते..
--वाह भई वाह!! कभी पॉडकास्ट भी करो तो सुनने का लुत्फ भी लिया जाये. बधाई.
वाहSSSS भाई… बेहतरीन रचना है फिर एक बार…
बहुत सुंदर!!!
दोनो हाथों में ले के हौले से
जैसे कुतरा किये गिलहरी हो
तेरे मासूम ज़ख्म तो हैं पर
मेरे अहसास सह नहीं पाते..
aakhri panktiyaan saari kavita ko naya rukh deti hain...mujhe behad pasand aai....waaah kya baat kahi hai..tere maasoom jakhm to hain par mere ehsaas sah nahi paate....WAH WAH.....
दोनो हाथों में ले के हौले से
जैसे कुतरा किये गिलहरी हो
तेरे मासूम ज़ख्म तो हैं पर
मेरे अहसास सह नहीं पाते..
जख्म भी मासूम होते हैं , आज जान लिया आपसे।
मेरी भी यही मांग है कि आप इसे आवाज दें।
तुमने सिर्फ छिलकों सा कर दिया है मन..
जैसे सीने का अपने ही पत्थर मैनें कंधे पे रख लिया अपनें..
तेरे मासूम ज़ख्म तो हैं पर मेरे अहसास सह नहीं पाते..
sachmuch adbhut!!! behtareen .. ananya bhaaw hain..
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