तुमने मुझको गलत तराशा है
मैं गुलाब की पंखुडी होता
या कि ताज के संगमरमर का टुकडा कोई
या कि बादल..
मोर का पंख हो गया होता
या कि उसकी पलकों में ठहरता मोती
या कि मेरी रूह किनारा होती
किसी दूर दीख पडते अंतहीन मझधार का..
तुमने पानी को आग से बांधा
तुमने पीडा को राग से बांधा
तुमने सागर भरा है सीने में
तुमने दिल मोम का बनाया है
तुमने मन से पतंग बांधी है
तुमने दरिया को दरख्त कर दिया है
तुमने सोचा ये किस किये
सागर सूख जाता तो बस हवा होता
मैं अगर आदमी नहीं होता
खुदा होता..
*** राजीव रंजन प्रसाद
९.०१.१९९६
7 comments:
Bahut khoobsurat bhaaw ukere hain.. aur prawaah bhi behatreen hai.. komal kawita lagti hai.. mann ko chhuti hai..saaree panktiyon mein ek alag ehsaas hai..
कविता के साथ आपने जो तस्वीर लगायी है काफी खूबसूरत है।
यह एक निहारिका है(हेलीक्स), ज्यादा जानकारी के लिये यहां पर देखें। इसे भगवान की आंख भी कहा जाता है।
किसी सीतारे की मृत्यु के बाद की अवस्था है यह। सितारे की मौत भी कितनी सूंदर है
"तुमने मुझको गलत तराशा है
मैं गुलाब की पंखुडी होता
या कि ताज के संगमरमर का टुकडा कोई
या कि बादल..
मोर का पंख हो गया होता
या कि उसकी पलकों में ठहरता मोती .."
राजीव जी, बहुत बहुत प्यारा लिखा है आपने!
कविता में भाव की प्रवीणता सर्वोव्यक्त है जिस सहजता से बनया है आपने अपनी अनछुई तस्वीर वह कहीं न कहीं मेरे हृदय में भी उभर आई है।
अच्छा लिख रहे हो. निरन्तर प्रगति करते रहो, यही कामना है
Rajeevji This is Small n Sweet.
तुमने मुझको गलत तराशा है...aapne yeh aachi baat kahi ishwar se....agar yeh sab hathkande ishwar nahi apnata to aadmi wakaai khuda hi ho gaya hota..
मैं अगर आदमी नहीं होता
खुदा होता..
मैं अगर आदमी नहीं होता
खुदा होता..
अनुपम हैं आप। इसी तरह हमारा मार्गदर्शन करते रहिये।
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