वे स्मृतियाँ
बिलकुल एसी ही हैं
जैसे बोझिलता के बाद चाय की पहली घूंट
जैसे गहरी घुटन के बाद एक गहरी स्वांस
जैसे आकाश ताकती ज़मीन पर हलकी सी फुहार
जैसे मरूस्थल की दुपहरी में ठंडी बयार
जैसे महीनों की कश्मकश के बाद लिखी गयी नज़्म
जैसे वीरान आसमान पर बादलों से लड झगड
निकल ही आया कोई सितारा
जैसे गहरी खामोशी में बजता हुआ जलतरंग
जैसे भटके हुए जहाजी को दूर दीख पडती हुई ज़मीन
जैसे प्यासे को नज़र आयी मरीचिका
वे स्मृतियाँ
बिलकुल एसी ही हैं
जैसे बहुत कडी धूप के बाद
टुकडा भर छाँव..
*** राजीव रंजन प्रसाद
२३.११.१९९५
12 comments:
आपकी लेखनी को नमन है बहुत ही सवेंदनशील लेखक है आप,... "वे स्मृतियाँ" इस कविता का जो रूप आपने लिखा है सचमुच जिवंत उदाहरण है इस बात का...
जैसे बोझिलता के बाद चाय की पहली घूंट
जैसे गहरी घुटन के बाद एक गहरी स्वांस
जैसे आकाश ताकती ज़मीन पर हलकी सी फुहार
जैसे मरूस्थल की दुपहरी में ठंडी बयार
जैसे महीनों की कश्मकश के बाद लिखी गयी नज़्म
जैसे गहरी खामोशी में बजता हुआ जलतरंग
जैसे भटके हुए जहाजी को दूर दीख पडती हुई ज़मीन
जैसे प्यासे को नज़र आयी मरीचिका
एक-एक शब्द सजीव चित्रण है कि कवि ने कविता में सारे भाव समेट लिये है...
बहुत-बहुत बधाई...
सुनीता(शानू)
सहज भाव लिये सुंदर कविता ...बधाई
राजीव जी आपकी स्मृतियां जगदलपुर, छत्तीसगढ की ही हैं क्योंकि वही इतनी भावपरक है । साधुवाद
बेहद सुन्दर रचना है...
उन मीठी यादों को दिल से जुदा क्यों करूं ,
खुद को अपने साए से बड़ा क्यों करूं.....
सुन्दर स्मृतियां हैं।
राजीवजी,
अधिकांश स्मृतियाँ वैसे भी सुन्दर होती है, आपने चार-चाँद लगा दिये। बधाई स्वीकारें।
वीरान आसमान पर बादलों से लड झगड
निकल ही आया कोई सितारा
सुन्दर भाव हैं. जल्तरंग पर ध्यान दें
अच्छे भाव, पसंद आये.बधाई.
smurtee ke baareme sahaja sunder bhaav bataanevaalee kavita
आपकी कविता कितनी सहजता से अंतस मे प्रवेश कर जाती है
समझ नहीं आता
बहुत सुन्दर "स्मृतियाँ" हैं
बधाई
सस्नेह
गौरव शुक्ल
प्यासे के लिये एक घूंट पानी और एक टुकडा छांव ही जिन्दगी है राजीव जी, सुन्दर भाव लिये रचना. आपके ब्लाग का बदला हुआ स्वरूप मुझे बहुत भाया.
very nice and touching poems i am not capable to comment on your poetry but i do read it
and thank you for always writing a small comment on my words
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