मेरे बगीचे के गुलाब
मुस्कुराते नहीं थे
हवा मुझे छू कर गुनगुनाती नहीं थी
परिंदों नें मुझको चिढाया नहीं था
मेरे साथ मेरा ही साया नहीं था
तुम्हे पा लिया, ज़िन्दगी मिल गयी है
चरागों को भी रोशनी मिल गयी है
नदी मुझसे मिलती है इठला के एसे
कि जैसे शरारत का उसको पता हो
कि कैसे मेरे पल महकने लगे हैं
कि कैसे मेरा दिल धडकने लगा है..
*** राजीव रंजन प्रसाद
9 comments:
one of the most romantic poem.very beautiful way that how you describe the two side of your passion.
बेहद खूबसूरत चित्र के साथ उतनी ही शानदार रचना...बहुत बहुत बधाई आपको.
नीरज
बहुत सुंदर राजीव जी
राजीव जी
बहुत बढ़िया लिखा है-
तुम्हे पा लिया, ज़िन्दगी मिल गयी है
चरागों को भी रोशनी मिल गयी है
ये खुशी बनी रहे और यूँ ही आप महकते रहें। सस्नेह
हृदय को प्रफुल्लित करने वाली रचना। बधाई
दीपक भारतदीप
बहुत उम्दा.बधाई.
बहुत बढ़िया लिखा है.बधाई
राजीव जी,
अच्छी रचना है...
तुम्हे पा लिया, जिन्दगी मिल गई है
चरागों को भी, रोशनी मिल गई है।
शानदार रचना की सराहना करता हूँ
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