Thursday, July 17, 2008

कैसे मेरा दिल धडकने लगा है...

मेरे बगीचे के गुलाब
मुस्कुराते नहीं थे
हवा मुझे छू कर गुनगुनाती नहीं थी
परिंदों नें मुझको चिढाया नहीं था
मेरे साथ मेरा ही साया नहीं था

तुम्हे पा लिया, ज़िन्दगी मिल गयी है
चरागों को भी रोशनी मिल गयी है
नदी मुझसे मिलती है इठला के एसे
कि जैसे शरारत का उसको पता हो
कि कैसे मेरे पल महकने लगे हैं
कि कैसे मेरा दिल धडकने लगा है..

*** राजीव रंजन प्रसाद

9 comments:

Sarita Acharya said...

one of the most romantic poem.very beautiful way that how you describe the two side of your passion.

नीरज गोस्वामी said...

बेहद खूबसूरत चित्र के साथ उतनी ही शानदार रचना...बहुत बहुत बधाई आपको.
नीरज

कुश said...

बहुत सुंदर राजीव जी

शोभा said...

राजीव जी
बहुत बढ़िया लिखा है-
तुम्हे पा लिया, ज़िन्दगी मिल गयी है
चरागों को भी रोशनी मिल गयी है
ये खुशी बनी रहे और यूँ ही आप महकते रहें। सस्नेह

dpkraj said...

हृदय को प्रफुल्लित करने वाली रचना। बधाई
दीपक भारतदीप

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा.बधाई.

समयचक्र said...

बहुत बढ़िया लिखा है.बधाई

PREETI BARTHWAL said...

राजीव जी,
अच्छी रचना है...
तुम्हे पा लिया, जिन्दगी मिल गई है
चरागों को भी, रोशनी मिल गई है।

vipinkizindagi said...

शानदार रचना की सराहना करता हूँ