Tuesday, July 29, 2008

कितनी कठोरता जानम..

पहाड से टकरा कर

लौट आता है तुम्हारा नाम

तुम से टकरा कर

लौट लौट आती है मेरी धडकन

कितनी कठोरता जानम

कि पर्बत हो गयी हो..


*** राजीव रंजन प्रसाद

6 comments:

अमिताभ मीत said...

अच्छा है भाई.

Prabhakar Pandey said...

सुंदरतम। चंद पंक्तियों में बहुत बड़ी बात वह भी बहुत ही खूबसूरती के साथ।

Anil Pusadkar said...

sundar

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा, क्या बात है!आजकल दिख नहीं रहे हैं आप!!

vipinkizindagi said...

बहुत अच्छा....
बहुत सुंदर ....

PREETI BARTHWAL said...

अच्छी रचना, बधाई हो