एक बार देस में पंछी के
दो चार चिरैये लड बैठे
फिर आसमान में सीमायें बन गयीं अनेकों
दो चार चिरैये लड बैठे
फिर आसमान में सीमायें बन गयीं अनेकों
कैसे सूरज बटता लेकिन
किसके हिस्से चांद सिमटता
और हवाओं का क्या होता
बैठ चिरैये सोच रहे थे
तुम भी सोचो
सीमा में क्या बंध जायेगा सब कुछ...
*** राजीव रंजन प्रसाद
*** राजीव रंजन प्रसाद
6 comments:
kabhi nahi Rajeev jee...achchhi kavita sundar bhav.
राजीव जी
बेहद दिलकश चित्र से सजी आप की ये रचना बेमिसाल है. इतने सुंदर ढंग से आप ने अपनी बात कही है की जबान पर वाह अपने आप चला आया है.
नीरज
achchhi kavita sundar bhav.
gehri soch hai is kavita mein BADHAI
PLEASE SEE MY NEW BLOG rangparsai n give your valuable comments
आप का ब्लॉग अच्छा लगा
और टिप्पणी के लिए धन्यवाद
आप अच्छा लिखते है
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