Wednesday, July 09, 2008

तुम भी सोचो..


एक बार देस में पंछी के
दो चार चिरैये लड बैठे
फिर आसमान में सीमायें बन गयीं अनेकों

कैसे सूरज बटता लेकिन
किसके हिस्से चांद सिमटता
और हवाओं का क्या होता
बैठ चिरैये सोच रहे थे
तुम भी सोचो
सीमा में क्या बंध जायेगा सब कुछ...

*** राजीव रंजन प्रसाद

6 comments:

L.Goswami said...

kabhi nahi Rajeev jee...achchhi kavita sundar bhav.

नीरज गोस्वामी said...

राजीव जी
बेहद दिलकश चित्र से सजी आप की ये रचना बेमिसाल है. इतने सुंदर ढंग से आप ने अपनी बात कही है की जबान पर वाह अपने आप चला आया है.
नीरज

समयचक्र said...

achchhi kavita sundar bhav.

Doobe ji said...

gehri soch hai is kavita mein BADHAI

Doobe ji said...

PLEASE SEE MY NEW BLOG rangparsai n give your valuable comments

vipinkizindagi said...

आप का ब्लॉग अच्छा लगा
और टिप्पणी के लिए धन्यवाद
आप अच्छा लिखते है